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अँधेरे में डूबकर
सन्नाटे से बतियाता
वो वीराना
समय से दौड़ में पिछड़ा
वह बेबस, कर्महीन खंड है
जो आजकल
बड़ा घबराया हुआ है उस
विशिष्ट उजाले की आहट सुनकर
जो उसके भाग्य की कालिमा
को धोने नहीं बल्कि उसे दुनिया के
सामने उजागर कर उसका
मजाक उड़ाने आनेवाला है।

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Comment

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Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on March 13, 2013 at 9:13am

आदरणीया प्राची दीदी, आपका हार्दिक आभार। आपने रचना की मूल भावना को समझा।

ये अँधेरे तो आज न जाने कितने लोगों की जिंदगी का हिस्सा बन गये हैं। जिनके पास उजाले आते तो हैं लेकिन वो उस अंधकार को और भी गहरा करके चले जाते हैं। ऐसी घटनाओं से दुख होता है। कैसे मिटे अंधेरा यदि दिया ही स्वार्थी हो जाए? लेकिन आजकल शायद यही हो रहा है.......

प्रोत्साहन हेतु पुनः आभार

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on March 13, 2013 at 9:06am

बहुत-बहुत धन्यवाद आपका मित्र राम शिरोमणि पाठक जी

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on March 13, 2013 at 9:05am

आदरणीय बड़े भैया गणेश जी, रचना की सराहना करके आपने मुझे मेरा पारिश्रमिक दे दिया। हार्दिक आभार

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on March 13, 2013 at 9:04am

प्रोत्साहन हेतु हार्दिक आभार आदरणीय रविकर सर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on March 12, 2013 at 10:14pm

बहुत भाव प्रधान रचना प्रिय कुमार गौरव जी 

सचमुच ऐसे उजाले किस काम के..जो अन्धकार को दूर न कर उस पर अट्टहास करते हों... और ऐसे उजाले की आहट से डरा एकाकी अंधकारमय व्यक्तित्व..... 

इस संवेदना के लिए हार्दिक बधाई 

समझना तो ये है कि वास्तिविक अन्धकार है कहाँ?

शुभकामनाएं 

Comment by ram shiromani pathak on March 12, 2013 at 5:39pm

बढ़िया प्रस्तुति-आदरणीय 

बधाई स्वीकार करें ।


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on March 12, 2013 at 4:46pm

बड़ा घबराया हुआ है उस
विशिष्ट उजाले की आहट सुनकर
जो उसके भाग्य की कालिमा
को धोने नहीं बल्कि उसे दुनिया के
सामने उजागर कर उसका
मजाक उड़ाने आनेवाला है।
सुन्दर भाव युक्त रचना है प्रिय गौरव जी, यह प्रस्तुति अच्छी लगी, बधाई स्वीकार करें ।

Comment by रविकर on March 12, 2013 at 4:26pm

हुम्म-
बढ़िया प्रस्तुति-
शुभकामनायें आदरणीय-

कृपया ध्यान दे...

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