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प्रेम से भ्रष्टाचार.

राग-रागिणी प्रेम की, उन्नत भ्रष्टाचार,

बहलाए फुसलाय के, देती माँ आहार,

देती माँ आहार, बाल शिशु जब भी रोये,

लोरी देत सुनाय, नहीं जो शिशु को सोये,

पति को रही लुभाय, मधुर व्यंजन से भगिणी,

उन्नत भ्रष्टाचार, प्रेम की राग-रागिणी//

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Comment by Ashok Kumar Raktale on March 8, 2013 at 10:57pm

आदरणीय प्रदीप जी आदरणीय डॉ. अजय खरे जी आपका छंद पसंद करने के लिए हार्दिक आभार.

Comment by Dr.Ajay Khare on March 8, 2013 at 12:03pm

taktale ji ati sunder rachana badhai

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 7, 2013 at 2:53pm

प्रेम राग नहीं रोग ही जानो 

फंसे जाल अंत अपना मानो 

अंत अपना मानो विकल्प न दूजा 

माँ बहना बेटी की  मिल करो पूजा 

बधाई आदरणीय अशोक सर जी 

सादर 

Comment by Ashok Kumar Raktale on March 6, 2013 at 10:44pm

आदरणीय राजेश झा जी सादर छंद अभिव्यक्ति पसंद करने के लिए आपका हार्दिक आभार.

आदरणीय लड़ीवाला साहब सादर आपकी सुन्दर छंद युक्त प्रतिक्रया से लगता है की बस होली आ ही गयी है. यूँ ही स्नेह बनाए रखें.

भाई राम शिरोमणि पाठक जी सादर,अभिव्यक्ति पसंद करने के लिए आपका हार्दिक आभार, आप यदि किसी भी पंक्ति का अर्थ न समझ सकें तो यह मेरे लेखन की त्रुटी है.अवश्य ही मैं इसे गम्भीरता से लूँगा और सुधार करने का पूर्ण प्रयास करूंगा. मेरा प्रयास इस पंक्ति में यह कहने का रहा है की माताए जब दिन भर शिशु की सेवा सुश्रुसा करके थक जाती हैं तो वे उसे रात को लोरी सुना कर शीघ्र सुलाने का प्रयास करती हैं ताकि वे भी कुछ आराम कर सकें. लोरी को मैंने घुस के रूप में बताने का प्रयास किया है.

Comment by ram shiromani pathak on March 6, 2013 at 7:35pm

आदरणीय अशोक रक्ताले जी,सुंदर अभिव्‍यक्ति के लिए हार्दिक बधाई, सादर

लोरी देत सुनाय, नहीं जो शिशु को सोये.............आदरणीय इस पंक्ति को समझ पाने में थोड़ी कठिनाई हो रही है .....

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 6, 2013 at 7:13pm

सदाचार मन में रख प्रेम में किया भ्रष्टाचार चलता है आदरणीय अशोक रक्ताले जी, हार्दिक बधाई,  साथ देखे - 

राग रागिणी प्रेम की, उन्नत भ्रष्टाचार 

देन कहे प्रभु कृष्ण की,कहते शिष्टाचार |

कहते शिष्टाचार,बसता प्रेम अँखियों में,

पिचकारी की मार, सखियां होली रंग में |

बुरा न कोई मान, राग में प्रेम सुहाणी,

करो न सोच विचार,प्रेम में राग रागिणी |-लक्ष्मण लडीवाला 

 

 

Comment by राजेश 'मृदु' on March 6, 2013 at 6:31pm

प्रेम में सब चलता है आदरणीय, सुंदर अभिव्‍यक्ति के लिए हार्दिक बधाई, सादर

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