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पथ के कांटे

तेरी एक छुअन

नया साहस।

   -----

 

ओस की बूंदें

हवा की शीतलता

तेरी छुअन।

   -----

 

तुम्हारा आना

बेचैन करता है

तुम्हारा जाना।

    -----

ढलती शाम

पंछी का कलरव

मेरी तन्हाई।

     -----

 

गांधी की देन

दो तारीख की छुट्टी

मौज ही मौज।

      -----

 

कल टंगे थे

आज खाली है फ्रेम

कहां हो गांधी।

       -----

            - बृजेश नीरज

 

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Comment

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Comment by रविकर on March 4, 2013 at 3:31pm

बढ़िया लगे

आदरणीय मित्र

सारे हाइकू

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 4, 2013 at 2:34pm

सुन्दर हाइकु, बधाई स्वीकारे श्री ब्रजेश कुमार जी 

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on March 4, 2013 at 12:48pm

आदरणीय गुरदेव सौरभ सर जी सादर प्रणाम
किस शेर की तारीफ करूँ और किसी की नही
हर इक शेर शानदार लाजवाब .............
हर इक शेर पे दाद क़ुबूल कीजिए सर जी वाह वा वा


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on March 4, 2013 at 12:34pm

सुन्दर हाइकू बृजेश कुमार जी 

यदि हाइकू में प्रथम और तृतीय पंक्ति सम्तुकांत हो तो हाइकू बेहद सुन्दर हो जाते हैं.वैसे यह अनिवार्य नहीं है. सादर.

Comment by pawan amba on March 4, 2013 at 6:36am

ढलती शाम

पंछी का कलरव

मेरी तन्हाई।

     ----- saare ke saare bahut achhe likhe hai sir..

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on March 4, 2013 at 1:13am

ब्रजेश जी बहुत बढ़िया हाइकु रचे हैं बहुत-बहुत बधाई |

Comment by बृजेश नीरज on March 3, 2013 at 10:10pm

आदरणीया राजेश कुमारी जी आपका आभार! 

आपको रचना पसन्द आई लिखना सार्थक हुआ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 3, 2013 at 9:46pm

ब्रजेश जी बहुत बढ़िया हाइकु रचे हैं बहुत-बहुत बधाई |

कृपया ध्यान दे...

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