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"बसंत"

मैंने देखा है 
आज दीवार के पीछे से 
*ढूंक रहा था 
कहीं कोई देख न ले 
उसको ऐसे नग्न 
इस बार प्रेम की 
तेज हवाएं 
उतार के ले गयीं 
उसके पीले वस्त्र 
और 
बदले में दे गयीं थी 
कुछ ताज़ा गुलाब 
जिनकी पंखुड़ी पंखुड़ी 
गलियारे में बिखरी थी 
बेचारा बसंत 
शर्मिंदा था

अपनी नादानी पे ..........दीप...........

*ढूंकना = चोरी चोरी नज़र बचा के झांकना 

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 16, 2013 at 3:44pm

ढूंक रहा था  .. इसी पर पूरे शब्द-चित्र का दारोमदार है. यही मुझे स्पष्ट नहीं हुआ, भाईजी.

कृपया ढूँकना का अर्थ स्पष्ट करें.

Comment by ram shiromani pathak on February 16, 2013 at 2:49pm

वाह ! क्या चित्रण किया है आपने........हार्दिक बधाई सर जी 

कृपया ध्यान दे...

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