कहो दर्द के देव तुम्हारे
चौबारे क्यों हमें डराय.. .
उदयाचल का
कोई जादू
कंगूरों पर
चल ना पाय
**कल जोड़े
भयभीत किरण भी
पल-पल काया
खोती जाय
पड़े तीलियों
के भी टोंटे
झूठे दीपक कौन जलाय ?
कहो दर्द के.....................
रोटी-बेटी
पर चिनगारी
रोज पुरोहित
ही रख आय
उलटा लटका
सुआ समय का
बड़े नुकीले
सुर में गाय
हर फाटक पर
जड़कर ताले
सन्नाटा खुलकर बतियाय ?
कहो दर्द के.....................
कलश-फूल भी
सहमे-दुबके
ताल-मंजीरे
बज ना पाय
गलते भावों
की रसरी भी
विषम बोझ यह
सह ना पाय
बेफिक्री की
घास कट गई
शबनम अब किस पर इतराय ?
कहो दर्द के.....................
अधर बिलखते
थाली पाकर
कौर कहां से
मुंह में जाय
हर चेहरे पर
धंसा मुहर्रम
सोलह आने
धमक डराय
गर्द बहुत
हमने थी झाड़ी
मन से **उख-बिख पर ना जाय ?
कहो दर्द के.....................
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
संदर्भानुसार प्रयुक्त शब्द
**कल जोड़ना- हाथ जोड़ना, **उख-बिख- बेचैनी
Comment
भाव से परिपूर्ण रचना. बधाई.
आदरणीय राजेश कुमार जी:
कलश-फूल भी
सहमे-दुबके
ताल-मंजीरे
बज ना पाय
...................................................
अधर बिलखते
थाली पाकर
कौर कहां से
मुंह में जाय
............................................
बहुत ही सुन्दर भाव पिरोय हैं आपने।
बधाई।
विजय निकोर
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