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काकी आई शहर से, सुनो शहर का हाल,
फ़ार्म हाउस बन रहे, धनवानों की चाल ।

धनवानों की चाल है, खेती का क्या काम
बचजाये बस आयकर,ये ही उनका काम ।

फार्म हाउस में हो रहे, कैसे कैसे काम,
नेता बने किसान है, छलक रहे है जाम ।

किसान खेतहीन हुए, जमींदार सब नाथ,
बँट में खेत जोत रहे, घरवाली के साथ ।

घरवाली को साथ ले, खेतो में जुट जाय,
दुपहरी की रोटी भी, छाँव तले ही खाय ।

जनता के इस राज में, बदल गयी तरकीब,
नेता सब मालिक बने, देखा राज अजीब ।

देखा राज अजीब है, नेता माला माल,
जनता अब कंगाल है, षड्यंत्रों का जाल ।

-लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला

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Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on November 25, 2012 at 4:34pm

yatharth satya 

badhai 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 25, 2012 at 10:37am

भाव अभिव्यक्ति पसंद कर सराहने के लिये आपका हार्दिक धन्यवाद शालिनी कौशिक जी 

Comment by shalini kaushik on November 25, 2012 at 12:58am

सही कहा आपने .बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति .
नारी के अकेलेपन से पुरुष का अकेलापन ज्यादा घातक

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