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मुक्तछंद कविता सम जीवन,
तुकबंदी की बात कहाँ है ||

लय, रस, भाव, शिल्प संग प्रीति |
वैचारिक सुप्रवाह की रीति ||
अलंकार से कथ्य चमकता |
उपमानों से शब्द दमकता ||
यगण-तगण जैसे पाशों से,
होता कोई साथ कहाँ है |
मुक्तछंद कविता सम जीवन,
तुकबंदी की बात कहाँ है ||

अनियमित औ स्वच्छंद गति है |
भावानुसार प्रयुक्त यति है ||
अभिव्यक्ति ही प्रधान विषय है |
तनिक नहीं इसमें संशय है ||
ह्रदयचेतना से सिंचित ये,
ऐसा यातायात कहाँ है |
मुक्तछंद कविता सम जीवन,
तुकबंदी की बात कहाँ है ||

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Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 5, 2012 at 10:48am
सुन्दर भाव बधाई अजितेंदु भाई, क्योंकि -
महाकवि सुमित्रा नंदन पन्त भी कर गए छंदमुक्त कविता 
भाव प्रवाह कर्ण प्रिय कथ्य में हो अगर पूरी क्षमता 
आह से निकले मुक्त भाव फिर क्यों हो वह कविता 
वह आता पछताता पथ पर दो टूक कलेजे से लगाता  
-यह भी थी कविता, लगती हो बह बहती सरिता -लक्ष्मण लडीवाला 
Comment by रविकर on November 5, 2012 at 10:37am

मुक्त छंद में भी मिले, बढ़िया भाव बहाव |
नई विधा यह डालती, सचमुच बड़ा प्रभाव ||

आभार आदरणीय ||

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