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नज़र से उसकी नज़र मिल गयी

नज़र को जैसे मिला नज़राना
नज़र को उसकी नज़र भर देखा 
नज़र नज़र में बना दीवाना 
दीवाना दीवाना मैं उसकी नज़र का दीवाना....
छत के गलियारे में वो
कपड़े सुखाने को आई थी
केश भी थे भीगे भीगे
कमर भी कुछ बलखाई थी
देखा उसने मुझको पहले
फिर वो कुछ शरमाई थी
भा गया दिल को मेरे उसका ये पलकें झपकाना 
दीवाना दीवाना मैं उसकी नज़र का दीवाना...
पहले भेजा फ्होल उसे
बाद में फिर इज़हार किया 
दिल में तो थी हाँ उसके 
पर शब्दों में इनकार किया 
कहा जो मैंने ज़हर दो मुझे 
लैब को हाथो से टार दिया
बहुत ही प्यारा लगा मुझे उसका ये बातें बनाना 
दीवाना दीवाना मैं उसकी नज़र का दीवाना...
घर से छिपकर, मुंह ढककर 
वो मुझसे मिलने आती थी 
काँधे पर सिर रखकर 
वो बड़ी देर बतयाती थी 
अरज करून जो अधर छूने की 
बात मेरी टरकाती थी 
फिर कहती झट खड़ी होके
मैं जाती हूँ कल फिर आना 
दीवाना दीवाना मैं उसकी नज़र का दीवाना... 
--- रणवीर प्रताप सिंह ---
 

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Comment by Ranveer Pratap Singh on November 2, 2012 at 9:41pm

@ Laxman Prasad Ladiwala bahut bahut dhanywaad sir... prayaasrat hoon achcha likhne ke liye

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 2, 2012 at 11:52am

दीवाना दीवाना तू उसकी नज़र का दीवाना.........दीवाना दीवाना पर मै हुआ तेरी कलम का दीवाना                                                  बढ़िया अभिव्यक्ति बधाई रणवीर प्रताप सिंह जी 

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