==========ग़ज़ल===========
बहरे - रमल मुसम्मन मह्जूफ़
वज्न- २ १ २ २- २ १ २ २ - २ १ २ २- २ १ २
पीर है खामोश भर के आह चिल्लाती नहीं
वो सिसकती है ग़मों में नज्म तो गाती नहीं
बाद दंगों के उडी हैं इस कदर चिंगारियाँ
आग है सारे दियों में तेल औ बाती नहीं
जिन सफाहों पर गिराया हर्फे-नफ़रत का जहर
हैं सलामत तेरे ख़त वो दीमकें खाती नहीं
चाँद को पाने मचलता जब समंदर का जिगर
मौज उठती है बहुत पर चाँद छू पाती नहीं
एक कोने में रखी जो सीख देती थी हमें
मौन है सूनी वो खटिया आज बतियाती नहीं
आधुनिक संसार में अब ज्ञान गूगल दे रहा
मान मर्यादा की शिक्षा छात्र को भाती नहीं
जिस हवा में बह गए हिटलर से तानाशाह भी
वो बगावत की हवा तूफ़ान अब लाती नहीं
आँख मूंदे खोजता है रोशनी नादान पर
ये अँधेरी राह तो मंजिल तलक जाती नहीं
वक़्त से ही सीखते हैं ये हुनर अब हम सभी
ज्यों नदी की धार पीछे लौट कर जाती नहीं
वो सनम जो बीच चौराहे खड़ा डंडा लिए
एक दिन पूजें उसे सब याद फिर आती नहीं
"दीप" जबसे पीठ पर खंजर चलाया यार ने
कर रहे हैं पीठ पक्की वीर अब छाती नहीं
संदीप पटेल "दीप"
Comment
संदीप जी बहुत उम्दा भाव है गज़ल के बधाई ।
आप बस धैर्य रखें संदीप भाई. देखियेगा, आप स्वयं ही सधते चले जायेंगे..
पीर है खामोश, भर के आह, चिल्लाती नहीं
वो सिसकती है ग़मों में नज्म तो गाती नहीं.. . इसके सानी में ’नज़्म भी’ कहने से क्या बात और खुल कर निखर सकती है ?
अब तो मूलभूत नियमों पर नहीं बल्कि ग़ज़ल की महीनी की बातें होंगीं, कहन की बातें होंगीं, रेशनलाइजेशन की बातें होंगीं. हम सब बहाव में साथ-साथ हैं...
जिस हवा में बह गए हिटलर से तानाशाह भी
वो बगावत की हवा तूफ़ान अब लाती नहीं
इस शेर में ’हवा’ का दो दफ़े होना खटक रहा है, इसे दुरुस्त करने की कोशिश करें.
आदरणीय गुरुवर सौरभ सर जी सादर प्रणाम
आपकी इस प्रतिक्रिया पे कुर्बान हो गया आपका ये चेला
यूँ लगा के बस किसी जंग के मैदान में खड़े लड़ रहे जवान को आज विजय श्री मिल गयी हो
लेकिन मुझे पता है की अब ये जंग और भी कठिन है ये तो बस चक्रव्यूह का पहला घेरा है जिसे संभवतः में भेदने में सफल हुआ हूँ
किन्तु आपने उत्साह इतना बढाया है की अगले घेरे को भेदने के लिए एक उमंग जाग उठी है
ये स्नेह और आशीष यूँ ही बनाये रखिये सर जी
अब और क्या कहूँ शब्द ही नहीं है निःशब्द हूँ और हतप्रभ भी आपकी प्रतिक्रिया से गुरुवर
संदीप भाई !! इसे कहते हैं आज की ग़ज़ल.. . ग़ज़लधर्मिता ’सिखाने’ वाले देख लें. खैर
किस शेर को उद्धृत करूँ !? अभी तक कुल आठ अश’आर लोगों में साझा कर चुका हूँ. शिल्प अपनी जगह, भाव को इस महीनी से गूँथा गया है कि दिल अश-अश कर रहा है. दिल से बधाई लें, भाई. ..
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