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ऐ मेरे प्रांगण के राजा

क्यूँ तुम ऐसे मौन खड़े 

झंझावत जो सह जाते थे 

जीवन के वो बड़े बड़े 

क्यूँ तुम ऐसे मौन खड़े ?

बरसों से जो दो परिंदे 

इस कोतर में रहते थे 

दर्द अगर उनको  होता 

तेरे ही  अश्रु बहते थे 

उड़ गए वो तुझे छोड़ कर 

अपनी धुन पर अड़े अड़े

क्यूँ तुम ऐसे मौन खड़े ?

इस जीवन की रीत यही है 

सुर बिना संगीत यही है  

उनको इक दिन जाना था 

जीवन  धर्म निभाना था 

राजा जनक भी खड़े रह गए 

आंसू  नयन से झड़े झड़े 

क्यूँ तुम ऐसे मौन खड़े ?

इकला ही है आना- जाना 

चंद दिनों का है ठिकाना 

जीवन के इस रंग मंच पर 

आकर बस किरदार निभाना 

कुम्भकार की माटी जैसे 

बनते मिटते सभी घड़े 

क्यूँ तुम ऐसे मौन खड़े ?

**********************

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Comment

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Comment by Rekha Joshi on October 9, 2012 at 11:19pm

इकला ही है आना- जाना 

चंद दिनों का है ठिकाना 

जीवन के इस रंग मंच पर 

आकर बस किरदार निभाना 

कुम्भकार की माटी जैसे 

बनते मिटते सभी घड़े 

क्यूँ तुम ऐसे मौन खड़े ?,अति सुंदर भाव आदरणीया राजेश जी ,हार्दिक धन्यवाद 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 9, 2012 at 7:16pm

प्रिय प्राची शुक्रिया 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 9, 2012 at 7:16pm

राजेश कुमार झा जी बहुत बहुत शुक्रिया आपको रचना पसंद आई 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on October 9, 2012 at 5:41pm

सुन्दर भाव आदरणीया राजेश कुमारी जी 

Comment by राजेश 'मृदु' on October 9, 2012 at 5:07pm

बेहद सुंदर रचना है पढ़ते-पढ़ते पूरी रचना अंदर हौले से कब उतर जाती है पता ही नहीं चलता, सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 9, 2012 at 1:11pm

आदरणीय लक्ष्मण लड़ीवाला जी बहुत बहुत आभार आपको पसंद आई रचना 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 9, 2012 at 1:10pm

हार्दिक आभार प्रिय संदीप शुभकामनायें 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on October 9, 2012 at 1:04pm

इस जीवन की रीत यही है,सुर बिना संगीत यही है  

जीवन के इस रंग मंच पर, आकर बस किरदार निभाना 

कुम्भकार की माटी जैसे, बनते मिटते सभी घड़े |

बहुत बढ़िया राजेश कुमारी जी आपने लिख दिया झट पट खड़े खड़े 

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on October 9, 2012 at 12:56pm

जीवन के इस रंग मंच पर 

आकर बस किरदार निभाना 

कुम्भकार की माटी जैसे 

बनते मिटते सभी घड़े 

क्यूँ तुम ऐसे मौन खड़े ?

वाह वाह क्या बात है

बधाई हो आपको


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 9, 2012 at 10:56am

आदरणीय नादिर खान जी बहुत बहुत शुक्रिया |

कृपया ध्यान दे...

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