For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल:काम बेशक न कीजिये

काम बेशक न कीजिए ज्यादा,
मीडिया में मगर दिखिए ज्यादा.

ये सियासत के खेल है साहब ,
बोइये कम छीटिए ज्यादा.

मिल गया है रिमांड पर अभियुक्त
पूछिए कम पीटिए ज्यादा.

सैलरी झाग दूध रिश्वत है,
फूंकिए कम पीजिए ज्यादा.

शेख जी हैं नए नए शायर ,
दाद कुछ और दीजिए ज्यादा.

लिफ्ट छाते में देकर देख लिया ,
बचिए कम भीगिए ज्यादा.

सभ्यता की पतंग और पछुआ बयार,
ढीलिए कम लपेटिए ज्यादा.

अपसंस्कृति की पपड़ियाँ उभरीं,
घर की दीवार लीपिए ज्यादा.

आप एम्.पी. से बन गए मंत्री,
गनर दो चार रखिये ज्यादा.

पांच वर्षों का गेम है सारा,
बांटिये कम फेंटिए ज्यादा.

कितनी मंथर गति तरक्की की,
दौडिए कम रेंगिए ज्यादा.

डोली महंगाई की रहेगी यहीं ,
रोइए कम भेंटिए ज्यादा.

Views: 579

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Abhinav Arun on October 26, 2010 at 8:11am
आदरणीय प्रीतम जी, श्री राणा जी,सुश्री जूली जी और श्री विकास राणा जी गज़ल पसंद करने के लिए आभार | आप सबका स्नेह प्रेरणा देता है|
Comment by PREETAM TIWARY(PREET) on October 25, 2010 at 12:15pm
बहुत ही शानदार रचना है अरुण भाई....हास्य और सत्यता से भरपूर इस ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत धन्यबाद अरुण भाई...
जय हो....

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on October 22, 2010 at 8:19pm
करारा तंज़ करती हुई रचना बहुत पसंद आयी|

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 20, 2010 at 9:28pm
अरुण भाई, मैने आपकी हिंदी टाइप वाली समस्या का समाधान खोज लिया है. कृपया नीचे दिया हुआ लिंक देखिये|
http://www.openbooksonline.com/forum/topics/5170231:Topic:27913
Comment by Julie on October 20, 2010 at 9:14pm
///डोली महंगाई की रहेगी यहीं,
रोइए कम भेंटिए ज्यादा...///

बहुत ही अच्छा लिखा है अरुण जी... बधाई...!!
Comment by vikas rana janumanu 'fikr' on October 20, 2010 at 12:06pm
सैलरी झाग दूध रिश्वत है,
फूंकिए कम पीजिए ज्यादा.

पांच वर्षों का गेम है सारा,
बांटिये कम फेंटिए ज्यादा.3


bahut sahi kaha hai
kya vyang hai ...
Comment by Abhinav Arun on October 20, 2010 at 10:22am
बागी जी कभी काफिये की गलती हो तो बताइएगा .ठीक करूँगा. इसी तरह तो जानकारी बढ़ेगी .हमें आपस में एक दूसरे को परिमार्जित करना है.तभी ओ.बी.ओ .का प्रयास सशक्त होगा.
Comment by Abhinav Arun on October 20, 2010 at 10:20am
कई बार पहली बार पोस्ट में मात्रा की कुछ त्रुटियाँ टाइप के कारण रह जाती हैं |और उनपर बाद में नज़र जाती है . अतः ठीक कर दोबारा पोस्ट करता हूँ |दरअसल मुझे हिंदी टाइप आती नहीं और गूगल द्वारा एक बार सही शब्द अक्सर बन नहीं पाता.जैसे अभी पाता को "पाटा"हो जा रहा है.और कोशिश कर के भी "छीतिये"हो जा रहा है जबकी लिखना ''chheetiye"चाहता था.इस गज़ल में.
Comment by Abhinav Arun on October 20, 2010 at 10:04am
सर्वश्री गणेश जी,योगराज जी,शेषधर जी आशीष जी और सुश्री प्रीती कुमारी जी पोस्ट पर प्रतिक्रिया के लिए और रचना पसंद करने के लिए मैं आभारी हूँ | आपका स्नेह हौसला देने वाला है. और अच्छा करू ये प्रयास रहेगा.

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 20, 2010 at 8:42am
हास्य और व्यंग का पुट लिये एक बेहतरीन ग़ज़ल, बहुत बढ़िया अरुण भाई , इस सुंदर प्रस्तुति पर दाद कुबूल कीजिये |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
17 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post रोला छंद. . . .
"आदरणीय जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी"
17 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया ....
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी ।"
17 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . कागज
"आदरणीय जी सृजन पर आपके मार्गदर्शन का दिल से आभार । सर आपसे अनुरोध है कि जिन भरती शब्दों का आपने…"
17 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .यथार्थ
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सृजन के भावों को मान देने एवं समीक्षा का दिल से आभार । मार्गदर्शन का दिल से…"
17 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .यथार्थ
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
18 hours ago
Admin posted discussions
yesterday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया ....
"बंधुवर सुशील सरना, नमस्कार! 'श्याम' के दोहराव से बचा सकता था, शेष कहूँ तो भाव-प्रकाशन की…"
Monday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . कागज
"बंधुवर, नमस्कार ! क्षमा करें, आप ओ बी ओ पर वरिष्ठ रचनाकार हैं, किंतु मेरी व्यक्तिगत रूप से आपसे…"
Monday
Chetan Prakash commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post लघुकविता
"बंधु, लघु कविता सूक्ष्म काव्य विवरण नहीं, सूत्र काव्य होता है, उदाहरण दूँ तो कह सकता हूँ, रचनाकार…"
Monday
Chetan Prakash commented on Dharmendra Kumar Yadav's blog post ममता का मर्म
"बंधु, नमस्कार, रचना का स्वरूप जान कर ही काव्य का मूल्यांकन , भाव-शिल्प की दृष्टिकोण से सम्भव है,…"
Monday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .यथार्थ
"अच्छे दोहे हुए हैं, आदरणीय सरना साहब, बधाई ! किन्तु दोहा-छंद मात्र कलों ( त्रिकल द्विकल आदि का…"
Monday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service