For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

शीर्षक सुझाइए

आज पैंतीस साल बाद उसकी आवाज सुनी 

पर पहचान नहीं पाई 
फोन पर वार्ता लाप कुछ इस तरह हुआ 
स्नेहा ---हेल्लो राज  पहचान कौन बोल रही हूँ 
मेरा उत्तर ---सारी कौन बोल रही हो ??
स्नेहा --अच्छा अब पहचानती भी नहीं पैंतीस  साल पहले याद कर स्कूल में कालेज में एक साथ घूमते थे 
मेरा जबाब --माफ़ करना नहीं पहचान पा रही हूँ |
स्नेहा ---अरे स्नेहा को भूल गई 
मैं उछल पड़ी बोली ---अरे तू जिन्दा है आई  मीन तू इस दुनिया में है कहाँ है कैसी है आज अचानक पैंतीस  साल बाद !!!मेरी आवाज रुद्ध गई|
स्नेहा ---हाँ इतने साल बाद अब तो मेरी तरह तू भी बुड्ढी हो गई होगी हाहाहा 
मेरा जबाब ---चुप मैं बुड्ढी नहीं हुई 
स्नेहा --हाँ हाँ बालों को डाई करती  होगी  हाहाहा 
मेरा जबाब --अच्छा और बता तेरा बेटा कितना बड़ा हो गया 
स्नेहा --बीस साल का हो गया आज इसी की वजह से तो मिले हैं ,अच्छा जीजू से बात करा 
मेरा जबाब --ये तो अभी बाहर हैं पहले तू करा 
स्नेहा ---कुछ देर की ख़ामोशी के बाद सोलह साल पहले एक्सीडेंट में चला गया इस बेटे को अकेला पाल रही हूँ 
मेरा जबाब ---दुखी मन से अफ़सोस किया फिर बोला यार तू कैसी हो गई है देखने को दिल कर रहा है 
स्नेहा -अपना फेस बुक आई डी दे अभी एक दूसरे को देख लेते हैं
मैंने तुरंत फेसबुक पर उसे एड  करलिया  
और उसने मेरे और मैंने उसके फोटो देखे उसको देखकर मैं सचमुच पहचान नहीं पाई सफ़ेद बाल शरीर की चेहरे की हड्डियां उभरी हुई चश्मा लगाए लगा जिन्दगी की जंग लड़ते लड़ते उसका क्या हाल हो गया 
कुछ देर बाद उसका फोन अचानक कट गया 
मैंने दो तान बार मिलाया और पूछा फोन क्यूँ काट दिया 
कैसी लगी मेरी दुनिया 
स्नेहा ---तेरी दुनिया मेरी दुनिया से बहुत बड़ी है राजेश बहुत फांसला है 
मेरा जबाब --दुनिया बड़ी है या छोटी मैं अभी भी वही तेरी सहेली हूँ चुपचाप ट्रेन पकड़ और मिलने आजा तुझे मेरी कसम 
स्नेहा ---देखूंगी कभी छुट्टी लुंगी तब 
मेरा जबाब ---तू ऐसे नहीं मानेगी तुझे चौदवीं सीढ़ी और समोसे की कसम जल्दी आना 
स्नेहा---अब तो आना ही पड़ेगा चौदवीं सीढ़ी और समोसे की कसम जो देदी   आज ही रिजर्वेशन करा रही हूँ 
(जब हम स्कूल में थे तो जीने की  चौदवी  सीढ़ी पर बैठ कर समोसे खाते थे ,और उसकी कसम देकर हम एक दूसरे से कुछ भी करवा लेते थे )
 उससे मिलने का बेसब्री से इन्तजार कर रही हूँ |

Views: 792

You Might Be Interested In ...

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 14, 2012 at 12:05pm

हार्दिक आभार रेखा जी सच में पैंतीस साल पीछे पंहुच गई थी आज कल अंतरजाल कितना उपयोगी हो गया है ये मेरा सबसे बड़ा उदाहरण है आपने अच्छा शीर्षक सुझाया धन्यवाद 

Comment by Rekha Joshi on September 14, 2012 at 11:37am

बहुत ही रोचक लगा आपका और आपकी सखी स्नेहा का वार्तालाप ,दोस्ती में समय के अंतराल का कोई महत्व नही होता आपतो पैंतीस साल पीछे पहुँच गई गयी होगी ,  वैसे सभी ज्ञानी जनों  अच्छे अच्छे शीर्षक सुझाएँ है ,आपकी सुनहरी  यादों के साथ जुड़ा हुआ शीर्षक चौदहवीं  सीढ़ी और समोसा ''कैसा रहे गा ,अति सुंदर अभिव्यक्ति आदरणीया राजेश जी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 14, 2012 at 10:13am

आदरणीय सौरभ  जी आपने इस वार्तालाप को दिल की गहराई से महसूस किया और अपने विचारों में प्रकट किया इसके लिए हार्दिक आभार बस अपनी ख़ुशी को आप लोगों में शेयर करने से रोक न सकी और इस पोस्ट का जन्म हो गया सच कहूँ तो आपकी प्रतीक्षा थी इस पोस्ट को, अपनी ख़ुशी में आपको शामिल करने के लिए|आपकी प्रतिक्रिया बहुत सुखद एहसास कराती है 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 14, 2012 at 10:06am

आदरणीय अम्बरीश जी हार्दिक   आभार आपका मेरे वार्तालाप में शामिल होने का शीर्षक का इशारा आपकी बातों से लग गया धन्यवाद 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 14, 2012 at 9:57am

जीवन के पथ पर अग्रसरित समस्त इकाइयाँ वैयक्तिक संदर्भों के अनुसार मिलती-बिछुड़ती रहती हैं. हरेक का प्रारब्ध उसका अपना कर्मफल अर्जन ही है. लेकिन वही नियामक भी है. इस रचना में आपने एक कथा के सभी मानक विन्दुओं को अत्यंत खूबसूरती से उकेरा है. पाठक की रोचकता अंत तक बनी रहती है और रचना की नायिका के साथ वह भी उक्त मित्र के संभावित आगमन की प्रतीक्षा करता दीखता है  -- आयेगी, नहीं आयेगी के ऊहापोह में ..

आदरणीया राजेश जी, आपकी प्रस्तुत संवाद-रचना आपके भाव-संप्रेषण में निरंतर आते निखार की परिचायक है.

सादर

Comment by Er. Ambarish Srivastava on September 14, 2012 at 9:51am

आदरेया राजेश कुमारी जी ! बहुत ही जीवंत वार्तालाप है यह सभी कुछ वास्तविक सा लग रहा है ....और इसमें दी गयी कसम के क्या कहने .....'चौदहवीं सीढ़ी के समोसे की कसम....'  वाह वाह वाह!!! .इसके लिए बहुत बहुत बधाई स्वीकारें !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 14, 2012 at 9:32am

हार्दिक आभार संदीप जी आपकी प्रतिक्रिया  के लिए सुन्दर शीर्षक सुझाया है इस शीर्षक के दो वोट हो गए आपसे पहले प्राची जी भी यही शीर्षक सुझा चुकी अभी और देखती हूँ और लोगों के सुझाव 

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on September 14, 2012 at 9:19am

आदरणीया राजेश कुमारी जी सादर प्रणाम
बड़ी ही भावात्मक बात कह कर आपने शीर्षक सुझाने के लिए कहा है
ऐसी यारी अब कहाँ है खोज रहा हूँ सादर
वैसे लेखन के हिसाब से इसका शीर्षक "चौदहवीं सीढ़ी" सही होगा


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 13, 2012 at 7:42pm

गणेश जी बागी जी आपने सही कहा बचपन लौट आता है कितनी ख़ुशी मिलती है बता नहीं सकती बहुत बढ़िया शीर्षक सुझाया है आपने 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 13, 2012 at 7:40pm

संदीप द्विवेदी जी बहुत अच्छा शीर्षक सुझाया है आपका हार्दिक आभार 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post दोहा सप्तक
"बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय लक्ष्मण धामी जी "
18 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post दोहा सप्तक
"आ. भाई सुरेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं । हार्दिक बधाई।"
20 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"सादर नमस्कार आदरणीय।  रचनाओं पर आपकी टिप्पणियों की भी प्रतीक्षा है।"
Friday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"आपका हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी।नमन।।"
Friday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"आपका हार्दिक आभार आदरणीय तेजवीर सिंह जी।नमन।।"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"बहुत ही भावपूर्ण रचना। शृद्धा के मेले में अबोध की लीला और वृद्धजन की पीड़ा। मेले में अवसरवादी…"
Friday
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"कुंभ मेला - लघुकथा - “दादाजी, मैं थक गया। अब मेरे से नहीं चला जा रहा। थोड़ी देर कहीं बैठ लो।…"
Friday
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"आदरणीय मनन कुमार सिंह जी, हार्दिक बधाई । उच्च पद से सेवा निवृत एक वरिष्ठ नागरिक की शेष जिंदगी की…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"बढ़िया शीर्षक सहित बढ़िया रचना विषयांतर्गत। हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह जी।…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"रचना पटल पर उपस्थिति और विस्तृत समीक्षात्मक मार्गदर्शक टिप्पणी हेतु हार्दिक धन्यवाद आदरणीय तेजवीर…"
Friday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"जिजीविषा गंगाधर बाबू के रिटायर हुए कोई लंबा अरसा नहीं गुजरा था।यही दो -ढाई साल पहले सचिवालय की…"
Friday
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी साहब जी , इस प्रयोगात्मक लघुकथा से इस गोष्ठी के शुभारंभ हेतु हार्दिक…"
Friday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service