अमृत ही बरसाय (संशोधित दोहे)
गुरु ज्ञान बाँटन लगे, ले सके वही लेत,
जैसे सूखा कुसुम भी ,खुशबू ही बिखराय
साधू अपने ज्ञान से, अमृत ही बरसाय //
- लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला,जयपुर
Comment
भाई श्री अलबेला जी, आपकी सलाह को तो ओबीओ मेले में ही सिरोधार्य कर
आदरणीय लक्ष्मण प्रसाद लाडिवाला जी, आपकी छंद बद्ध विधाओं के प्रति सीखने की, व नित्य प्रयासरत रहने की भावनो को देख बहुत हर्ष होता है. बस ज़रा सा प्रयास और करिए आप निश्चय ही बहुत जल्द पूर्णतः शुद्ध दोहे लिख सकेंगे. हार्दिक शुभकामनाएं.
इन दोहों में निहित भावों हेतु हार्दिक बधाई
आपकी प्रस्तुतियों से हमें भी उत्साह बना रहता है, आदरणीय लक्ष्मणजी. पाठकों की जो अभी तक प्रतिक्रियाएँ आयी हैं, उनपर अविलम्ब ध्यान देते हुए आगे प्रयास किया जाय.
सादर
आदरणीय Laxman Prasad जी आप सिर्फ एक दिन किसी भी एक दोहे को पूरे दिन गुनगुनाइए ....... मात्राएँ गिन कर छंद लिखा नहीं जा सकता सिर्फ जांच हो सकती है कि जो लिखा गया है वो नियमबद्ध है या नहीं ...आपके कथ्य इतने अलग और समृद्ध होते हैं की उन्हें व्यर्थ जाते देख अच्छा नहीं लगता आप स्वयं बिलकुल अनुशासित दोहा कह सकें ऐसी मेरी हार्दिक कामना है ....शुभकामनाएं
महकता रहे पुष्प सदा, भले सूखता जाय,
जैसे सूखा कुसुम भी ,खुशबू ही बिखराय
साधू अपने ज्ञान से, अमृत ही बरसाय.
बहुत खूब ...आदरणीय लक्ष्मण जी, सुन्दर भावयुक्त दोहों के लिए बधाई स्वीकारें मित्रवर ! आदरणीय अलबेला जी ने सत्य कहा है ....उस पर ज़रा ध्यान दें !
आदरणीय लड़ी वाला जी........आपके दोहे बांच कर प्रसन्नता हुई.........बस थोड़ा सा और परिश्रम करें तो आप कुशल दोहाकार बन सकते हैं.........बस इत्ता भर करना है कि प्रकाशित करने के पहले दो तीन बार खुद बांच लें.......आशा है आप अन्यथा नहीं लेंगे मेरे कथन को.........
खबर पढ़ कर जग मुआ, ज्ञानी हुआ न कोय,_____ख़बरें पढ़ पढ़ जग मुआ, ज्ञानी भया न कोय
छंद काव्य में मन लगा, मन निर्मल सा होय //____छंदों में जब मन लगे, तब मन निर्मल होय
__सादर
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