For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जबाब नहीं है ख़ामोशी

"जबाब नहीं है ख़ामोशी "

जबाब नहीं है ख़ामोशी
सब जानते हैं
इसमें तो छुपा होता है
गलतियाँ स्वीकारने का हाँ
कसमसाहट भरी वो हाँ
जो हाँ कहने पर
जुबान शर्मशार हुई जाती है
फिर भी
हज़ारों सवालों का जबाब है
मेरी ख़ामोशी
क्यूंकि मैं शर्मशार हूँ
हाँ यही सच है
गलत तो कुछ भी नहीं
सब सच है
चाहे तो आग लगा के देख लो
मेरी हर शै में
जलने के बाद 
जो बचेगा वो सच है
भले काला ही क्यूँ न हो
उसमे छुपा होगा
मेरी खामोशी का सच
काला सा
चाहो तो सफाह पे लिख लेना
दीवार पे पोत लेना
या फिर
एक बार फिर भड़का लेना शोले
उस काले बचे हुए कोयले से
मैं रोज देख रहा हूँ
इस समय
वो विज्ञापन
जिसमे आता है
एक हफ्ते में कैसे पायें
बेदाग़ गोरापन
कैसे बचाएं
उजाले के लिए बिजली
क्यूंकि अंधेरों को इसकी जरुरत नहीं
वो तो दियासलाई से काम चला लेते हैं
और वो भी नहीं मिले
तो जुगनू ढूंढ लेते हैं
पर अब जुगनू कहाँ ढूंढें
जंगल तो काट दिए
बेचारे अँधेरे
गुमराह हो के भटकने लगे
जुगनुओं की तलाश में
छी शर्मशार हूँ में
खामोशी तोड़ भी तो नहीं सकता
सुबह उठ जाता हूँ
दांत चीखते हैं
कोलगेट कर लो
कोलगेट कर लो
पर में करता हूँ
दन्त मंजन
कोयले से बना हुआ
कम से कम मसूड़े मजबूत हो जाते हैं
कीमिया नमक मिला लेता हूँ
उसमे जनता का
फिर सोचता हूँ
नमक हराम हूँ मैं
क्या जबाब दूं
ख़ामोशी ही ठीक है
हजारों जबाबों में गुनाह कुबूलना
आसाँ नहीं है
इसीलिए खामोशी भरी हाँ बेहतर है
हर शै काली हो जाती है
चाहे वो सोना ही क्यूँ न हो
जब होती है उसकी पहचान
जल कर , जलाकर
लकड़ी के सूखे ठूंठ में
वैसे भी सब्ज पत्ते कब आये हैं
कब कंगूरे में
कोपलें सजी हैं
हाँ दिवाली के दिए जरुर जले हैं
तेल के
दर दर रौशनी फैलाते
लेकिन मैं जला हूँ
तो कोयला बन गया
आसमान पे बादल हैं
वो भी काले
सफ़ेद बादलों से सीखा था
ललचा के चले जाना
लेकिन वो भी
जबाब देना न सिखा सके
और गम हो गए
नीले समन्दर की गहराई में
मोती की तलाश तो थी
पर निकल आया कोयला
जानता हूँ
जबाब नहीं है ख़ामोशी

संदीप पटेल "दीप"

Views: 532

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on September 6, 2012 at 11:07am

आदरणीय योगी जी सादर प्रणाम
आपको अभिव्यक्ति पसंद आई और आपकी सराहना मिली
इसके लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद सहित सादर आभार
स्नेह यूँ ही बनाये रखिये

Comment by Yogi Saraswat on September 6, 2012 at 10:27am

दर दर रौशनी फैलाते
लेकिन मैं जला हूँ
तो कोयला बन गया
आसमान पे बादल हैं
वो भी काले
सफ़ेद बादलों से सीखा था
ललचा के चले जाना
लेकिन वो भी
जबाब देना न सिखा सके
और गम हो गए
नीले समन्दर की गहराई में
मोती की तलाश तो थी
पर निकल आया कोयला
जानता हूँ
जबाब नहीं है ख़ामोशी

क्या बात है संदीप पटेल साब ! बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति और खूबसूरत अल्फाज़

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on September 6, 2012 at 10:01am

आदरणीय गणेश सर जी सादर प्रणाम
आपको लेखन पसंद आया मेरा लिखना सफल हो गया
अपना स्नेह और सहयोग  अनुज पर यूँ ही बनाये रखिये
आपका बहुत बहुत धन्यवाद और सादर आभार


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 5, 2012 at 8:23pm

सीढ़ी दर सीढ़ी चढ़ती रचना जो कड़ी दर कड़ी जुडी हुई है, बहुत ही अच्छी बन पड़ी है, बधाई संदीप जी |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
" और, हाँ, जनाब,  गिरह सम्बंधित आपक सुझाव भी शत-प्रतिशत प्रशंसनीय है ! मगर  कारण वही…"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
1 hour ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आदरणीय,  यूफोनिक  आदरणीय, यूफोनिक अमित जी, शुभ प्रभात, मैंने आपकी समीक्षा अभी देखी,आप से…"
2 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"ग़ज़ल द्वेष हर दिल से मिटा कर के नतीजा देखूँ देश का हाल भला बनता है कैसा देखूँ रास्ता बीच का मजबूत…"
9 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आ. भाई दिनेश जी, सादर अभिवादन। गजल का प्रयास अच्छा हुआ है। हार्दिक बधाई।"
10 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आदरणीय Chetan Prakash जी आदाब। ग़ज़ल के प्रयास पर बधाई स्वीकार करें। मेरे …"
11 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आदरणीय नीलेश जी नमस्कार बहुत ख़ूब ग़ज़ल हुई है बधाई स्वीकार कीजिये गिरह भी ख़ूब, हर शेर पे दाद क़ुबूल…"
12 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आदरणीय दिनेश जी नमस्कार अच्छी ग़ज़ल का प्रयास है बधाई स्वीकार कीजिये गुणीजनों की इस्लाह क़ाबिले…"
13 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आदरणीय लक्ष्मण जी नमस्कार अच्छी ग़ज़ल कही है आपने बधाई स्वीकार कीजिये गिरह भी ख़ूब हुई सादर"
13 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"2122 1122 1122 22 घर से निकलूँ कहीं बाहर जो है दुनिया देखूँ वक़्त के साथ ही ख़ुद को भी मैं चलता…"
13 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आदरणीय Nilesh Shevgaonkar जी आदाब। अच्छी ग़ज़ल हुई । बधाई स्वीकार करें।"
13 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service