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न जाने भला या बुरा कर रहा है;
वो चिंगारियों को हवा कर रहा है; (१)

वो मग़रूर है किस कदर क्या बताएं?
हर इक बा-वफ़ा को ख़फ़ा कर रहा है; (२)

नहीं उसको कुछ भी पता माफ़ कर दो,
वो क्या कह रहा है, वो क्या कर रहा है; (३)

वो नादान है बेवजह बेवफ़ा की,
मुहब्बत में दिल को फ़ना कर रहा है; (४)

है जिसने भी देखा ये जलवा तेरा उफ़,
वो बस मरहबा-मरहबा कर रहा है; (५)

भुला दी हैं मैंने वो माज़ी की बातें,
तू अब बेवजह तज़किरा कर रहा है; (६)

भले आज़माइश कड़ी से कड़ी हो,

हमेशा बशर आज़मा कर रहा है; (७)

नहीं उसके बस में हुकूमत चलाना,
वो हर बात पर मशवरा कर रहा है; (८)

भले लाख टुकड़े हुए आईने के,
वो सच तो हमेशा दिखा कर रहा है; (९)


***

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Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on August 13, 2012 at 6:52pm

आदरणीय भ्रमर जी,

आपका स्नेह रूप आशीर्वाद बस यूँ ही बरसता रहे! हार्दिक धन्यवाद आपका..!

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on August 13, 2012 at 6:49pm

है जिसने भी देखा ये जलवा तेरा उफ़,
वो बस मरहबा-मरहबा कर रहा है; (५)

भले लाख टुकड़े हुए आईने के,
वो सच तो हमेशा दिखा कर रहा है; (९)

वाहिद काशीवासी भाई जी बहुत सुन्दर ....क्या अंदाज हैं  आप के काविले तारीफ़ ज़नाब ....

भ्रमर ५ 
Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on August 6, 2012 at 10:40am

यूँ हर्फों में करता तकल्लुफ अगर तो
ये अशआर सारे बुरा मान जाते

वाह भाई संदीप जी! आपकी ये शाइराना प्रतिक्रिया तो ख़ूब भाई! बहुत आभार आपका!

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on August 6, 2012 at 10:38am

डॉ. साहब सादर नमस्कार,

आपसे तो बहुत कुछ सीखने को मिला है वो भी ओबीओ पर आने के पहले से ही! आप जैसे क़ाबिल ग़ज़लनिगार से सराहना मिलना वास्तव में इंगित करता है कि मैं अपने प्रयास में कुछ हद तक सफल रहा हूँ! :-) धन्यवाद,

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on August 6, 2012 at 10:35am

आदरणीय उमाशंकर जी,

आपकी सराहना हेतु आपका आभारी हूँ! सादर,

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on August 6, 2012 at 9:54am

वाह वाह वाह वाह
संदीप भाई बेहद शानदार शालीन ग़ज़ल के लिए
हर शेर पे दाद
और दाद पे दाद क़ुबूल फरमाइए
क्या बात है

यूँ हर्फों में करता तकल्लुफ अगर तो
ये अशआर सारे बुरा मान जाते
 
बेहतरीन संदीप भाई

Comment by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on August 5, 2012 at 10:52pm

वाहिद भाई नमस्कार !

अब क्या कहूँ  और कहाँ से तारीफ की शुरुआत करूँ कुछ समझ नहीं आरहा है...अभी तक की सबसे बेहतरीन ग़ज़ल पढ़ी आपकी...ग़ज़ल के सारे शिल्प, ग़ज़ल की सारी खूबियाँ मौजूद है इस ग़ज़ल में। मतले से लेकर मकते तक हर एक शेर अपने आप में नायाब है। बहुत ही मुकम्मल ग़ज़ल काही है आपने। मेरी भी हार्दिक बधाइयाँ और दुवाएँ कुबूल करें !!

Comment by UMASHANKER MISHRA on August 5, 2012 at 8:46pm

नहीं उसके बस में हुकूमत चलाना,
वो हर बात पर मशवरा कर रहा है

भले लाख टुकड़े हुए आईने के
वो सच तो हमेशा दिखा कर रहा है

BAHUT KHUB KAHAA HAI  वाह संदीप जी

 

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on August 5, 2012 at 6:50pm

आदरणीय निगम साहब,

आपकी प्रतिक्रिया हेतु आपके प्रति ह्रदय से आभार व्यक्त करता हूँ! सादर,

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on August 5, 2012 at 6:49pm

आदरणीय 'हबीब' भाई जी,

आपके उत्साहवर्धन से मनोबल में समुचित वृद्धि हुई है! आपसे प्रशंसा पा कर अभिभूत हूँ! सादर,

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