ये कहाँ खो गई इशरतों की ज़मीं;
मेरी मासूम सी ख़ाहिशों की ज़मीं; (१)
फिर कहानी सुनाओ वही मुझको माँ,
चाँद की रौशनी, बादलों की ज़मीं; (२)
वक़्त की मार ने सब भुला ही दिया,
आसमां ख़ाब का, हसरतों की ज़मीं; (३)
जुगनुओं-तितलियों को मैं ढूंढूं कहाँ,
शह्र ही खा गए जंगलों की ज़मीं; (४)
दौड़ती-भागती ज़िंदगी में कभी,
है मुयस्सर कहाँ, फ़ुर्सतों की ज़मीं; (५)
गेंहू-चावल उगाती थी पहले कभी,
बन गई आज ये असलहों की ज़मीं; (६)
क्या बताऊँ मैं 'वाहिद' तमन्ना कोई,
अब तलक दूर है मन्नतों की ज़मीं; (७)
Comment
प्रशंसा हेतु धन्यवाद राजीव जी !
आदरणीया सीमा जी,
बहुत देर से लौटा हूँ करबद्ध हूँ! आप जैसी विदुषी से प्रशंसा के कुछ बोल पुरस्कार के समान हैं! आपके दो शे'र निस्संदेह मेरे कथ्य को अत्यंत उत्कृष्ट ढंग से संप्रेषित कर रहे हैं! विनयावनत,
महिमा जी हार्दिक धन्यवाद आपका! विलंबित उत्तर हेतु क्षमाप्रार्थी हूँ!
निशब्द !
बहुत मुश्किल में पड़ गयी मै तो देर से पहुँच कर कि अब क्या बोलूँ इतनी तारीफ़ तो पहले ही हो चुकी है किसी भी शेर को पढ़ो लगता है यही बेस्ट है ...मतलब पहले शेर से लेकर अंतिम शेर तक सभी बेस्ट
ये कहाँ खो गई इशरतों की ज़मीं;
मेरी मासूम सी ख़ाहिशों की ज़मीं; .....बहुत मासूम सी बात
जुगनुओं-तितलियों को मैं ढूंढूं कहाँ,
शह्र ही खा गए जंगलों की ज़मीं; ..............वाह बहुत खूब संदीप जी
....................................................सडकें बनती रहीं गाँव खोते रहे
....................................................यूँ तरक्की के हम बीज बोते रहे
दौड़ती-भागती ज़िंदगी में कभी, .............अर्श पा तो लिए कामयाबी के ,पर
है मुयस्सर कहाँ, फ़ुर्सतों की ज़मीं;..........चैन के फर्श आंसू से धोते रहे
चलिए आपके बहाने मैने भी दो शेर कह लिए
दिली मुबारकबाद इस खूबसूरत गज़ल के लिए
जुगनुओं-तितलियों को मैं ढूंढूं कहाँ,
शह्र ही खा गए जंगलों की ज़मीं; (४)
दौड़ती-भागती ज़िंदगी में कभी,
है मुयस्सर कहाँ, फ़ुर्सतों की ज़मीं; (५)
गेंहू-चावल उगाती थी पहले कभी,
बन गई आज ये असलहों की ज़मीं; (६)
वाह !!! क्या बात है आदरणीय वाहिद साहब .. बहुत ही बढियां ...बधाई आपको ..
आदरणीया सरिता जी,
एक लंबे अंतराल के पश्चात आपकी प्रोत्साहनयुक्त प्रतिक्रिया पा कर हार्दिक प्रसन्नता हो रही है! साभार,
आसमां की तलाश में जाने कब,
आदरणीय अशोक जी,
आपकी सराहना और प्रशंसा के लिए हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ!
अब क्या कहूँ संदीप जी आपने तो निरुत्तर कर दिया! आभार,
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