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बेशर्मी का ओढा चोला,सारा सभ्य समाज,

चीखे अबला द्रोपदी, कौन बचाए  लाज//
 
महंगाई से तरस रहे, भुखमरी की मार 
भ्रूण हत्या कैसे रुके, पंगु हुई सरकार //
 
दोस्तों से गुठ रही, घर में रहे मन मार
भाई बंधू ही देता, संकट में रक्त यार //
 
भ्रष्टाचारी लोग जो, इनका चलता राज 
इमानदार व्यथित है, देख कोढ़ में खाज //
 
लूट सको तो लूट लो, सबसे बढ़िया धंधा 
महंगाई की मार भी, क्या करेंगी पंगा //
 
देख आजादी देश की,सब हुए खुशहाल
खुशहाल सब नेता हुए, जनता है बेहाल  
 
चिंतन युक्त जीवन रहे, रहो चिंतासे मुक्त
अपना ये जीवन रहे , बुरे साथ से मुक्त //  
 

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Comment

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Comment by आशीष यादव on July 26, 2012 at 10:38pm

बिल्कुल सामयिक रचना। बढ़िया वर्णन हैं।
बधाई स्वीकारें

Comment by Albela Khatri on July 26, 2012 at 9:34pm

बहुत  उम्दा पंक्तियाँ  कहीं आपने लक्ष्मण प्रसाद जी....
__अभिनन्दन !

Comment by Ashok Kumar Raktale on July 26, 2012 at 9:00pm

सादर प्रणाम,

                   दोस्तों से गुठ रही, घर में रहे मन मार

                    भाई बंधू ही देता, संकट में रक्त यार //
 सुन्दर रचना. भ्रष्टाचार की व्यथा और सजग रहें का सन्देश किन्तु क्षमा करें उक्त पद पर सहमति नहीं है.

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