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वक़्त (कुछ दोहे)

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वक़्त चिरैया उड़ रही , नित्य क्षितिज के पार l 
राग सुरीले छेड़ती , अपने पंख पसार ll
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वक़्त परिंदा बाँध ले , बन्ध न ऐसो कोय l
थाम इसे जो उढ़ चले , जीत उसी की होय ll
**************************************************
बीते पल की थाप पर , मूरख नीर बहाय l
खुशियों को ढूँढा फिरे , कबहु तुष्टि ना पाय ll
**************************************************
कल क्या होवे सोच जो , अपनी नींद गवाँय l
स्वप्नों के धागों उलझ , नित नित तड़पा जाय ll
**************************************************
जनम पूर्व से बह रहा , मृत्यु पार तक जाय l
शाश्वत औ साक्षी सदा , हर पल साथ निभाय ll
**************************************************
आलस  निद्रा डूब कर , जो परिहास उढ़ाय l
वो जड़ सम सोया रहे , पग पग ठोकर खाय ll
**************************************************
मान करे जो वक़्त का , वर्तमान रम जाय l
भूत-भविष उसके चरण , अपनें शीश नवाय ll
**************************************************
अबहु भयी है देर नहिं, थाम वक़्त की डोर l
मन आनंदित हो मगन , बढ़े सत्य की ओर ll
**************************************************
 

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Comment

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Comment by Ashok Kumar Raktale on July 24, 2012 at 2:08pm

प्राची जी
        सादर, वक्त से सत्य तक सुन्दर दोहावली. तकनीक पर जानकार महानुभाव  मार्गदर्शन दे ही रहे हैं. मुझ अज्ञानी का भी, मन की इच्छाओं को व्यक्त करने का, एक लघु प्रयास है.
       दोहा छंद लिखने की, प्रथा चली घनघोर,
             बैठ दोहा छंद लिखूं, जागा मन मे चोर.

Comment by Er. Ambarish Srivastava on July 24, 2012 at 1:54pm

सादर

Comment by Er. Ambarish Srivastava on July 24, 2012 at 1:29pm

बचपन में पढ़ा गया एक दोहा .....

ऐसी वाणी बोलिए, मन का आपा खोय. 

औरन को शीतल करे, आपहुँ शीतल होय..     संत कबीर

Comment by Er. Ambarish Srivastava on July 24, 2012 at 11:23am

स्वागत है डॉ० प्राची !


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 24, 2012 at 11:13am

आदरणीय अम्बरीश जी,

शंका निवारण के लिए आपका बहुत बहुत हार्दिक आभार.
Comment by Er. Ambarish Srivastava on July 24, 2012 at 11:07am

//आलस निद्रा डूब कर , जो परिहास उड़ाय  l

२११     १२   २१ ११=12

 अब तो मात्रा १२ हो रही है......
 
//अबहु भयी है देर नहिं, थाम वक़्त की डोर l
१११     १२   २  २१ १२=14
यहाँ मात्रा १४ हो जायेगी .....//
डॉ० प्राची जी, संभवतः किसी त्रुटिवश आप द्वारा की गयी गणना सही नहीं हो सकी है......आपसे अनुरोध है कि  'निद्रा' २२ ( यहाँ पर 'नि' को लघु मत समझिए उस पर भार है ) व 'नहिं' ११ (हिं=लघु) का उच्चारण करके देखिये  ..........
आलस निद्रा डूब कर , जो परिहास उड़ाय  l

२११     २ २   २१ ११=१३

मात्रा तो १३ ही है ......
 
//अबहु भयी है देर नहिं, थाम वक़्त की डोर l
१११     १२   २  २१ ११ =१३
इसमें भी मात्रा तो १३ ही है  .... सादर

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 24, 2012 at 10:44am

आदरणीय प्रधान सम्पादक महोदय,

सादर नमन. आपकी टिप्पणी द्वारा दोहा छंद पर होने वाले प्रयास हेतु शुभाशीष पाना अभिभूत कर रहा है. आपका हार्दिक आभार. सादर.

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 24, 2012 at 10:38am

आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी,

आपकी शुभ कामनाओं के लिए हार्दिक आभार, गेयता कि दृष्टि से भी छंदों को साध सकूं  इस दिशा में प्रयास जारी हैं. कृपया आशीर्वाद बनाए रखें. पुनः आभार.

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 24, 2012 at 10:36am

आदरणीया सीमा जी, आपको ये दोहा प्रयास सुन्दर लगा, इस हेतु आपका हार्दिक आभार


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 24, 2012 at 10:28am

आदरणीय अम्बरीश जी, 

आपका हार्दिक आभार , आपने मेरी दोहा रचना को इतना वक़्त दिया...

लेकिन एक शंका का निवारण जरूर कीजिये सर.

सुधार हेतु कुछ सुझाव .....

  २२१

//आलस्य निद्रा डूब कर , जो परिहास उढ़ाय l
वो जड़ सम सोया रहे , पग पग ठोकर खाय ll//
२११ 
आलस निद्रा डूब कर , जो परिहास उड़ाय  l
२११     १२   २१ ११=12
वो जड़ सम सोया रहे , पग पग ठोकर खाय ll
 अब तो मात्रा १२ हो रही है......
 
 
/अबहु देर भयी न बहत , थाम वक़्त की डोर l  (गेयता)
मन आनंदित हो मगन , बढ़े सत्य की ओर ll//     

//अबहु भयी है देर नहिं, थाम वक़्त की डोर l
१११     १२   २  २१ १२=14
मन आनंदित हो मगन, बढ़े सत्य की ओर ll//
यहाँ मात्रा १४ हो जायेगी .....
 
क्या मेरी मात्रा गणना गलत हो रही है, या हम कुछ स्थान विशेष पर छूट ले सकते है.. 
 
सादर. 

 

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