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टूट गया है क्या वह सांचा बाबाजी

कितना झूठा, कितना साचा बाबाजी
हमने सब का  चेहरा बांचा बाबाजी

अग्निपथ टू  देख के दर्शक चौंक उठे
विजय से ज़्यादा हॉट है कांचा बाबाजी

जुहू तट पर अपनी अपनी आयटम संग
खोज  रहे  सब  कोना- खांचा  बाबाजी

सीधे सच्चे बन्दे  जिसमें  ढलते थे
टूट गया है क्या वह सांचा बाबाजी

महाराष्ट्र में रह कर मैं भी सीख गया
तुमचा, आमचा, यांचा, त्यांचा बाबाजी

झंडों में बदलाव का कोई लाभ नहीं
बदलना होगा  पूरा ढांचा बाबाजी

चोर होगया नौ दो ग्यारह और पुलिस
करती रह गई  तीया-पांचा बाबाजी

 अवगुण औरों में तो ढूंढे "अलबेला"
लेकिन ख़ुद को कभी न जांचा बाबाजी

जय हिन्द !

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Comment

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Comment by Albela Khatri on June 7, 2012 at 4:35pm

सम्मान्य गणेश जी बागी साहेब, 
आपने इस रचना को  पास कर दिया . यह बहुत बड़ी बात है मेरे लिए.  हालाँकि मैं अपनी  सीमा  भली-भांति  जानता हूँ . अभी मैं केवल भावप्रधान  रचना रचने का ही प्रयास करता हूँ . एक बयान की तरह  शब्दों को तरतीब से सजा कर  प्रस्तुत करता हूँ.........धीरे धीरे जब ग़ज़ल कहने  का सलीका आ जाएगा  तब  शाइरी भी आ जायेगी और  शब्द-शिल्प में सौन्दर्य भी  आ जाएगा .  लेकिन तब तक यों ही  प्रोत्साहन देते रहिये इस बालक को ताकि  जी लगा रहे और ऊर्जा बनी रहे

आपकी सराहना  ह्रदय में  सहेज ली है ..धन्यवाद

Comment by Albela Khatri on June 7, 2012 at 4:18pm

आपका  बहुत बहुत  धन्यवाद  आदरणीय  भावेश राजपाल जी....
सराहना  के ये शब्द सर आँखों पर

Comment by Bhawesh Rajpal on June 7, 2012 at 4:05pm
वाह -वाह ! क्या खूब लिखा है , अलबेला जी , मेरी ओर से हार्दिक बधाई ! 

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on June 7, 2012 at 3:59pm

अलबेला जी, अपेक्षाकृत बहुत ही कठिन काफिया को आपने पूरी ग़ज़ल में निभाया है, मकता खास तौर पर तारीफ़ के योग्य है, बहुत बहुत बधाई आदरणीय |

Comment by Albela Khatri on June 7, 2012 at 3:49pm


आपका एक एक शब्द सर आँखों पर,,,,,,
आभार  रेखा जोशी जी

Comment by Albela Khatri on June 7, 2012 at 3:47pm

शुक्रिया  सोनम सैनी जी...........
आभार  इस सराहना  के लिए

Comment by Albela Khatri on June 7, 2012 at 3:44pm

सराहना के इस कोमलकांत  स्पर्श  के लिए  आपका विनम्र धन्यवाद  अरुण कान्त शुक्ला जी

आभारी हूँ

Comment by Sonam Saini on June 7, 2012 at 2:38pm

bahut khub sir ji. sahi likha hai.

Comment by Rekha Joshi on June 7, 2012 at 2:25pm

Albela ji 

सीधे सच्चे बन्दे  जिसमें  ढलते थे 
टूट गया है क्या वह सांचा बाबाजी ,stiik likha hae ,badhai 

Comment by अरुण कान्त शुक्ला on June 7, 2012 at 1:44pm

झंडों में बदलाव का कोई लाभ नहीं
बदलना होगा  पूरा ढांचा बाबा जी .. आपके लिखने का अंदाज बहुत प्यारा और सरल है , जो दिल के साथ दिमाग में भी घुसता है | बधाई ..|

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