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हमेशा के लिए...

थम गया है वक़्त ..
जम गए हैं कदम ..
पसरा है सनसनाता सन्नाटा ..
अपना घर आँगन 
जो महकता था 
फूलों की बगिया सा,
गुलमोहर के पेड़ से 
झड़ते थे जहाँ आशीषों के फूल ..
अब है वीरान  खंडहर सा..
नहीं लौट रहे
स्नानकर, वापिस
अपने वीराने आशियाने की ओर
भारी कदम..
आँखों की बदरी में
पिघल रहे हैं गुज़रे लम्हें ,
जो दुआओं से रौशन थे
अब अन्धकार में डूबे हैं..
डबडबाई आँखें  
और भीगा मन
नहीं है इंतज़ार,
सिर्फ पसरा है
सूनापन..
उड़ गए हैं धुंआ बन 
उनकी रूह और जिस्म के साथ
हमारे अनगिन ख्वाब..
खोखला हो गया
अस्तित्व जैसे,
ज्वालामुखी फटे से
सूना हो जाए
गिरि का सीना
हमेशा के लिए...
 
 

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Comment by AVINASH S BAGDE on June 4, 2012 at 7:36pm

उड़ गए हैं धुंआ बन 

आपकी रूह और जिस्म के साथ
हमारे अनगिन ख्वाब......bahut khoob dhardar panktiya Dr Prachi ji,,,

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on June 4, 2012 at 7:34pm

 

हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण प्रसाद जी

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on June 4, 2012 at 7:33pm
 आभार! उमाशंकर मिश्रा जी

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on June 4, 2012 at 7:31pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय राजेश कुमारी जी.
बड़ों के बिना घर बिलकुल सूना होता है... कविता में निहित अंतर्भावों को पढनें और मेरे मम्मा-पापा को श्रद्धा अर्पित करनें के लिए आपका ह्रदय से आभार.

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on June 4, 2012 at 6:43pm

"पसरा है सनसनाता सन्नाटा ..
अपना घर आँगन जो महकता था 
फूलों की बगिया सा,गुलमोहर के पेड़ से 
झड़ते थे जहाँ आशीषों के फूल .".
सुन्दर रचना, अच्छे शब्दों की अभिव्यक्त  है , 
हार्दिक बधाई  |-लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला
Comment by UMASHANKER MISHRA on June 4, 2012 at 5:58pm
ज्वालामुखी फटे से
सूना हो जाए
गिरी का सीना
हमेशा के लिए...बढिया प्रयोग,सुन्दर अभिव्यक्ति

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 4, 2012 at 5:33pm

घर में एक सूनेपन का आभास कराती बहुत भावपूर्ण रचना आपके अंतर्भावों को मैं बाखूबी समझ सकती हूँ प्राची जी उन दिव्य आत्माओं को मेरा भी नमन |


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on June 4, 2012 at 4:48pm

हार्दिक आभार आदरणीय योगराज प्रभाकर जी


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on June 4, 2012 at 4:47pm

आदरणीय प्रदीप कुशवाहा जी,

आपकी सुन्दर प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार.
Comment by chandan rai on June 4, 2012 at 4:47pm
प्राची जी
यूँ पसरा है सूनापन..
उड़ गए हैं धुंआ बन
आपकी रूह और जिस्म के साथ
हमारे अनगिन ख्वाब..
खोखला हो गया
अस्तित्व जैसे,
ज्वालामुखी फटे से
सूना हो जाए

दर्द की इन्तेहाँ और प्रेम की पराकाष्ठा
बहुत खूब , बधाई

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