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मानसरोवर से मैं  निकली गंगोत्री  मेरा धाम 
पाप धोएं पापी मुझमे फिर भी मैं निष्काम
प्रयास भगीरथ करके लाये  धरा   निज  धाम 
साठ सहस्त्र पुरखे तारे  कहाँ  मोहे   विश्राम 
चली नगर जब  भर   डगर  बंजर उपजाऊ   हो  गए
छा गयी हरियाली जग में प्यासे मन   हर्षित   हो गये
माँ कहके जन पुकारे मुझको  आरती करे सुबह शाम 
कैसे दुश्मन इस धरा के मैला छोड़  रहे  बेदाम 
आये न लज्जा करें न सज्जा मति  इनकी  मारी   है 
काहे   करते  मैला मुझको  ऐसी भी   क्या  लाचारी  है 
 करोगे गर अब तुम अब भी मैला तेरे उपवन खाऊँगी
जहरीली तो मैं हो चुकी अब न बचूं  मर जाउंगी 
समय अभी  है चेत  जा  मानव काहे  अपमान करे 
माँ हूँ तेरी लाख सताए तू काहे का अभिमान करे 
राजा  बैठा  करे न रक्षा संतन की  अब बारी है 
पूत कपूत भये अब तो लम्पट औ   व्यभिचारी हैं  
आओ सब मिल साफ़ करो मांग रही हूँ भिक्षा 
माँ की ये हालत कर दी क्या मिली थी शिक्षा 

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Comment

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Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 12, 2012 at 5:07pm
आदरणीय ( सब कुछ  जी) योगराज  जी. सादर
पोस्ट होते ही आपका स्नेह मिला .रचना को  कविता  का मान मिला 
धन्य हुआ इस धरती पे ऑ.बी.ऑ. पर आने पर ही ज्ञान मिला 
धन्यवाद . जय गंगा मैया. रक्षा करिए. 

माँ की रक्षा कर लो यदि माँ के सच्चे सपूत हो 
वर्ना जीना व्यर्थ तुम्हारा इससे  अच्छा  निपूत  हो. 
Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 12, 2012 at 4:58pm
आदरणीय अविनाश  जी. सादर
आपकी   प्रतिक्रिया सर जी मैं गदगद हो गया. 
धन्यवाद . जय गंगा मैया. रक्षा करिए. 
Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 12, 2012 at 4:56pm
आदरणीय नीलांश  जी. सादर
धन्यवाद . जय गंगा मैया. रक्षा करिए. 
Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 12, 2012 at 4:54pm
आदरणीय संदीप जी. सादर
आभार. जय गंगा मैया. रक्षा करिए. 

प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on May 12, 2012 at 4:06pm

माँ गंगा की दुर्दशा का बहुत ही मार्मिक चित्रण किया है अग्रज प्रदीप सिंह कुशवाहा जी. क्या गंगा को माँ कहने वाले हम भारतीय इतने असंवेदनशील और स्वार्थी हो गए हैं कि हमें सच्चाई नज़र ही नहीं आती. मेरा अंतर्मन ये सोच सोच कर ही भयभीत हो रहा है कि भारतवर्ष का क्या होगा अगर गंगा ही न बची तो. इस बेहद सारगर्भित कविता पर मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें.

Comment by AVINASH S BAGDE on May 12, 2012 at 3:53pm
समय अभी है चेत जा मानव काहे अपमान करे
माँ हूँ तेरी लाख सताए तू काहे का अभिमान करे

आओ सब मिल साफ़ करो मांग रही हूँ भिक्षा
माँ की ये हालत कर दी क्या मिली थी शिक्षा ....ganga safai abhiyan me obo k Pradeep ji ka bhi ye sahityik yogdan....ise padh ham GANGA naha liye...wah!
Comment by Nilansh on May 12, 2012 at 3:37pm

mahimamyi

sunder rachna

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on May 12, 2012 at 3:25pm

behad sundar ..................jai ganga maiya ki

har har gange

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