For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

इश्क की कोमल भावनाओ से 

अछूती है मेरी कविताये 

इन्हें अभी एहसास नहीं 
किसी के प्रथम छुअन का 
तडप नहीं अभी इन्हें 
किसी के इंतजार की 
धडका नहीं शब्दों मे 
कोई नाम अभी 
शर्म से बोझिल हुई नहीं 
अभी काव्या मेरी 
किसी के होने से 
रचा नहीं कोई गीत इसने 
नहीं पता अभी इसे 
आलिंगन मे खो जाना क्या होता है 
बोझल सांसो के सुर ताल मे 
धडकनों का राग क्या होता है 
ये भी तो जाना नहीं, 
अभी इसने 
रगों मे एहसासो का 
बिजली सा कौंध जाना क्या होता है 
लाज का दामन थामे 
महफ़िल मे रुसवाई की हद तक 
किसी को ताके जाना क्या होता है 
इन बातो से भी तो 
अनभिज्ञ है मेरी कविता 
कि मंदिर की चौखट मे 
मांगी गयी दुआओं का 
हासिल क्या होता है 
अभी तो ये जान भी नहीं पाई है 
दर्द की उन बारीकियों को 
कि जिसमे चल के इश्क जवां होता है 
कि वाकिफ नहीं हुई है ये अभी 
बारिश के पानी से 
धुंधली पड़ी यादो का 
धुल जाना क्या होता है 
भीड़ और तन्हाई मे 
एक ही शख़्स को तलाशना 
और फिर निराशा के दर्द को 
सहलाना क्या होता है 
सूख चुके घावों को 
नित नयी उलाहनाओ से 
कुरेदना क्या होता है 
क्योंकि इश्क की कोमल भावनाओ से 
अभी अछूती है मेरी कवितायें..

Views: 882

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Atendra Kumar Singh "Ravi" on July 12, 2013 at 1:14pm

क्या बात है दिव्या जी आपने तो अपनी कविता में प्रेम के वो सारे अनछुए एहसासों को पन्ने पर उकेर डाला है और कहती है हमें पता नहीं की ये प्रेम क्या होता है और इसके एहसास क्या होते हैं .....बहुत दिनों के बाद ऐसी रचना पढने को मिली .....आपको दिल से बधाई

Comment by अरुन 'अनन्त' on May 1, 2013 at 5:11pm

वाह आह वाह आह दिव्या जी सिर्फ यही शब्द हैं कुछ और शेष हैं ही नहीं, किन शब्दों में आपकी सराहना करूँ किन शब्दों में मन के भीतर उठ रहे भावों को व्यक्त करूँ. निःशब्द कर दिया है आपने, शब्दकोष से सारे शब्द आपने चुरा लिए हैं. आनंद आ गया काफी अरसे के बाद ऐसी रचना मिली है पढ़ने. दिल से भर भर के ढेरों बधाई स्वीकारें.

Comment by Raj Kumar Rohilla on June 23, 2012 at 9:47pm

ye painting bhi aapki hai kya?

Comment by Raj Kumar Rohilla on June 23, 2012 at 9:46pm

मेरे तो सब्द ही खो गए क्या लिखूं आपकी तारीफ में 

अति   सुन्दर 

Comment by दिव्या on April 23, 2012 at 8:03am

आदरणीय सौरभ सर जी, मुक्त कंठ से प्रशंसा के लिए आप का ह्रदय से आभार | आप की  इस उम्मीद पर खरा उतरने की पूरी पूरी कोशिश रहेगी | आप के आशीष का हाथ सदा चाहूंगी | गलतियों की तरफ ध्यान दिलाने के लिए आभार अगली बार कोशिश रहेगी ये टंकण दोष न हो | एक बार फिर से आप का शुक्रिया 

Comment by दिव्या on April 23, 2012 at 7:56am

आदरणीया सरिता सिन्हा जी, आप का तहे दिल से शुक्रिया 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 20, 2012 at 4:57pm

दिव्या जी....... .   देर तक गुम रहा...   बेबोल... .  अद्भुत भाव-संसार में उछाल दिया आपने.

खुले दिल से कहूँ, तो, ओबीओ के पटल पर अबतक की प्रतीक्षित रचना थी. 

इस पटल पर कई बार कई-कई रचनाकारों द्वारा वयस के इस मुलायम मोड़ की अभिनव अनुभूतियों को अभिव्यक्त करती रचनाएँ आयीं हैं, किन्तु, हर बार ’कुछ और..’ की पिपासा के साथ मेरा पाठक मन प्रछन्न बना रह गया था.  आज आपकी इस प्रवहमान रचना ने एकबारगी संतृप्त कर दिया.  शब्द, भाव, अभिव्यक्ति और छंदमुक्तता का शिल्प, सबकुछ सामञ्जस्य में है.  ईश्वर आपके रचनाकर्म को अनवरत प्रखर करता रहे. 

आपसे हम सभी ने बहुत उम्मीदें लगा रखी हैं, दिव्याजी. हृदय की गहराइयों से शुभकामनाएँ.

 

ध्यातव्य : अक्षरी और व्याकरण सम्बन्धी दोषों के प्रति संवेदनशील रहें.  वर्ना रुमानी खयालों के हलवे को गुलगुलाने के आनन्द में ऐसे दोष बेतरीके पड़े कंकड़ से कस के लगते हैं.

Comment by Sarita Sinha on April 20, 2012 at 2:08pm

दिव्या जी नमस्कार , 

बहुत ईमानदार प्रस्तुति......भावों और शब्दों की लाजवाब जुगलबंदी.......बधाई....
Comment by दिव्या on April 20, 2012 at 8:43am

आदरणीया राजेश कुमारी जी, इस प्यारी सी प्रतिक्रिया के लिए आप का तहे दिल से आभार 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 20, 2012 at 8:25am

 दिव्या जी आपने रचना के माध्यम से पहले प्रेम में उभरते दिली भावों को बड़ी चतुरता से कह डाला बड़ा सुन्दर लगा यह अंदाज इस प्यारी सी भोली सी रचना के लिए हार्दिक   बधाई 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, प्रस्तुति पर आपसे मिली शुभकामनाओं के लिए हार्दिक धन्यवाद ..  सादर"
6 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ कर तरक्की जो सभा में बोलता है बाँध पाँवो को वही छिप रोकता है।। * देवता जिस को…See More
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
yesterday
Sushil Sarna posted blog posts
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Nov 5
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Nov 5

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Nov 2
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Nov 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Oct 31
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Oct 31
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Oct 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service