तुम हर पल क्यूँ सजग रहे
कौन व्यथा है दबी हिय में
किस अगन में संत्रस्त रहे |
घूर रहे क्यूँ रक्तिम चक्षु
कुपित अधर क्यूँ फड़क रहे
दावानल से केश खुले क्यूँ
तन से शोले भड़क रहे |
प्रदूषण ने ध्वस्त किये
जो, बहु तेरे संबल रहे
कतरा -कतरा टूट-टूट कर
चुपके -चुपके पिघल रहे |
हे हिमगिरी,हे हिमनद
पिघलते रहे जो
यूँ ही अप्रतिहत
प्रलय भयावही आएगी
जगत जननी, पावन धरिणी
सब जल थल हो जायेगी |
कष्ट निवारक ,विपदा हारक
हे जगदीश ,हे त्रिपुरारी
उसे जगा दो अपने बल से
सो रही जो दुनिया सारी|
*****
Comment
बहुत बहुत आभार राकेश त्रिपाठी जी आपने बहुत सुन्दर पंक्तियाँ रची हैं सही कह रहे हैं गंगा की शुधि सफाई बहुत जरूरी है
आदरणीया राजेश कुमारी जी, आपको बधाई एवं अभिनन्दन आपसे प्रेरणा पा कर ४ लाइन लिख रहा हूँ, साथ साथ:
अगर गलाना है तो, दिलो में जमी बर्फ गलाओ,
ऊँच नीच, जात पात का दुर्गम फर्क हटाओ.
करो हिमालय की रक्षा, गंगा की जान बचाओं,
पालूशन को दूर करो, धरती को स्वर्ग बनाओ. :)
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harday se aabhari hoon Ajay ji is sarahna ke liye.
सतीश मापतपुरी जी अहो भाग्य मेरे जो आपने मुझे इस लायक समझा हार्दिक आभार आपको|
हार्दिक आभार प्राची जी मेरी कविता का इतना सुन्दर विश्लेषण हेतु सच में ग्लोबल वार्मिंग एक ज्वलंत समस्या है जिसके लिए जागरूक होने की आवश्यकता है वर्ना ये प्राकर्तिक आपदाएं जो हाल ही में कितने देशों में देखी जा रही हैं इस प्रथ्वी इस मानव जीवन को ले डूबेंगी हाल ही की घटनाओं से उद्वेलित मन की कलम है ये |
प्रदूषण ने ध्वस्त किये
जो, बहु तेरे संबल रहे
कतरा -कतरा टूट-टूट कर
चुपके -चुपके पिघल रहे |
यथार्थ चित्रण .......... आपकी सोच को सलाम राजेश कुमारी जी
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