मृत्यु जब तक तुम्हे
वरण नहीं कर लेती
तब तक करो इन्तजार
रखो अटल विश्वास
गले लगा लो
सारी प्रवंचनाएं
मत ठुकराओ
दुनियावी बंधन
मान-अपमान की पीड़ाएँ
भीड़ व् अकेलेपन की दुविधाएं
सभी अपना लो
सदियों की धूल
लगा लो माथे पे
चूम लो सारे
अनुग्रह -आग्रह
बाँहे फैला कर
स्वीकार कर लो
जिसे व्यर्थ समझ
ठुकराया था अब तक
क्योंकि तभी आसां हो पाएगी
मृत्यु के इन्तजार की अवधि
Comment
dharshnikta ki soch liye hue aapki rachna bahut pasand aai.
महिमा जी,
सत्य को स्वीकारती सुन्दर रचना. बधाई.
snehi mahima ji, saadar gathe hue sundar bhav ki rachna. badhai.
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