For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल- गालियों से पेट भर रोटी नहीं तो क्या हुआ

 

ग़ज़ल- गालियों से पेट भर रोटी नहीं तो क्या हुआ

 

ये व्यवस्था न्याय की भूखी नहीं तो क्या हुआ ,

गालियों  से पेट भर रोटी नहीं तो क्या हुआ |

 

पार्कों में रो  रही  हैं गांधियों की मूर्तियाँ ,

सच की इस संसार में चलती नहीं तो क्या हुआ |

 

वो उसूलों के लिए सूली पे भी चढ़ जाएगा ,

आपकी नज़रों में ये खूबी नहीं तो क्या हुआ |

 

खुद ही तिल तिल जलना है और चलना है संसार में ,

आंधियां में बातियाँ जलती नहीं तो क्या हुआ |

 

ये सियासत बेहयाई का सिला देगी ज़रूर ,

अबके किस्मत आपकी चमकी नहीं तो क्या हुआ |

 

पुलिस चौकी दारू के ठेके खुले  हर गाँव में ,

सड़क पानी खाद और बिजली नहीं तो क्या हुआ |

 

चल खड़े हो एक जुट हम बादशा को दें जगा ,

घंटी दिल्ली में कोई पगली नहीं तो क्या हुआ |

 

आप शीतल पेय की सौ फैक्ट्रियां लगवाइए ,

कल की  नस्लों के लिए पानी नहीं तो क्या हुआ |

 

नाव कागज़ की बनाना छोड़ना फिर ताल में  ,

वो कमी अब आपको खलती नहीं तो क्या हुआ |

 

गिल्ली डंडे गुड्डी कंचे कॉमिकों से दोस्ती ,

आज के बचपन में ये  कुछ भी नहीं तो क्या हुआ |

 

सड़क से सरकार तक इनकी सियासत है मिया ,

पत्थरों की मूर्तियाँ सुनती नहीं तो क्या हुआ |

 

इस तमाशे का  है आदी हाशिये का आदमी ,

लेती है सरकार कुछ देती नहीं तो क्या हुआ |

 

एक दिन वो आएगा उनकी लगेगी तुमको हाय ,

आज उनके हाथ में लाठी नहीं तो क्या हुआ |

 

इस तरक्की ने बदल डाले हैं त्योहारों के रंग ,

अबके होली में मिली छुट्टी नहीं तो क्या हुआ |

 

उम्र कैसे बीतती है आईनों से पूछना ,

खुद को ही अपनी कमी दिखती नहीं तो क्या हुआ |

 

{ ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा अंक - 20 में शामिल मेरी ग़ज़ल }

 

Views: 788

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 5, 2012 at 8:34pm

अत्यंत ही प्रेरणादायी टिप्पणी है आपकी आशुतोष जी. आपके शब्दों में यथार्थ और अनुभव खुल कर बोल रहे हैं. 

भाई अभिनवजी की ग़ज़लों की तासीर ही अलग है.  और इसके हम सभी को सात्विक अभिमान है. यही आपके शब्दों से परिलक्षित है. 

सादर

Comment by minu jha on March 5, 2012 at 4:36pm

आज की व्यवस्था पर  चोट करती रचना के लिए

बधाई स्वीकारें


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 4, 2012 at 11:51pm

भाई अभिनवजी, आपकी इस ग़ज़ल को हम सद्यः सम्पन्न तरही मुशायरे अंक - २० में सुन चुके हैं और भरपूर बधाई दे चुके हैं.

उक्त मुशायरे में इंगित सुधारों के अनुसार यदि इस पुनर्प्रस्तुतिकरण के पूर्व काम हुआ होता तो इस प्रस्तुतिकरण का अर्थ कई अर्थों में सभी पाठकों के लिये अत्यंत लाभकारी होता. मेरा ऐसा मानना है. 

मालूम ही है, तरही मुशायरा अंक - २० में सम्मिलित सभी ग़ज़लों का संकलन भाई राणा जी ने प्रस्तुत कर दिया है -

http://www.openbooksonline.com/forum/topics/5170231:Topic:195722?xg...

 

Comment by राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी' on March 4, 2012 at 11:22pm

श्री अरुण जी, बहुत सुंदर रचना, एक से बढ़ कर एक. "ये व्यवस्था न्याय की भूखी नहीं तो क्या हुआ" बहुत जबरदस्त आगाज़. वाह वाह वाह!!

Comment by CA (Dr.)SHAILENDRA SINGH 'MRIDU' on March 4, 2012 at 6:58pm

आदरणीय 'अभिनव' जी यथार्थता का मार्मिक चित्रण करती ग़ज़ल मन को भा गयी ,बधाई स्वीकार करें

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on March 4, 2012 at 5:53pm

आदरणीय 'अभिनव' जी! आपकी ग़ज़ल व्यवस्था पर करारा कटाक्ष कर रही है| बहुत अच्छी लगी मुझे| सादर,

Comment by satish mapatpuri on March 4, 2012 at 5:22pm

सड़क से सरकार तक इनकी सियासत है मिया ,

पत्थरों की मूर्तियाँ सुनती नहीं तो क्या हुआ |

बहुत खूब अरुण जी , इस बुलंद ख्याल के लिए दाद कुबूल फरमाएं
Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 4, 2012 at 5:17pm

खुद ही तिल तिल जलना है और चलना है संसार में ,

आंधियां में बातियाँ जलती नहीं तो क्या हुआ |

 

उम्र कैसे बीतती है आईनों से पूछना ,

खुद को ही अपनी कमी दिखती नहीं तो क्या हुआ |

SUNDAR BHAAV, SUNDAR PRASTUTI

BADHAI, AADARNIYA ARUN JI.

 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service