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जन्मदिन पर .

तुमनें दी 

शुभकामनाएं

कुछ की

प्रभु से प्रार्थनाएं .

सोचता हूँ

तुम्हें आभार दूँ

या दिल की

गहराइयों से चलकर

रूह के धरातल पर

उबलते , उफनते

विचार दूँ ?

क्या बता दूँ ?

की मैं क्यों

हो जाता हूँ उदास

क्यों बस

एक ही एहसास

मुझे कर जाता है

अंतर से बदहवास

हर साल

जब देती हो तुम

कुछ सपनों में ढाल

प्रेम से बुना

दिल से चुना

सपनों का जाल

जो मुझे कर जाता है

कुछ मन से

कुछ रूह से

अक्सर निढाल .

अपने पीड़ा

कैसे बताऊँ

मैं तुम्हें  ?

रूह के जख्मों को

कैसे दिखाऊ

मैं तुम्हें ?

अपनें हर

जन्म दिन पर

मैं  हो रहा हूँ

एक सुंदर लकड़ी सा

जिसमें लग चुका है घुन

घुन...

अहम् का

बहुत सारे 

भ्रम का.

सभी नें देखा है

इस लकड़ी की

सुन्दरता को

ऊपर से ही तो

उसने नहीं बताया

कि वो खोखली है 

अपनें अहम् के घुन से

भौतिकता की पागल धुन से

मैं उदास हूँ

क्यूंकि मैं जानता हूँ

मेरी हमसफ़र

जनम दिन पर

मुझे पुराना व खोखला

नहीं होना था

बल्कि

विकसित होना था

क्या मैं हो पाया ?

बताओगी ज़रा ?

 

रचयिता : डा अजय कुमार शर्मा...EDITED ALL NEW ON 27.02.2012

Views: 302

Comment

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Comment by asha pandey ojha on February 25, 2012 at 10:57pm

bahut khoob ... janmdin ki dheron shubhkamnayen aapko  Ajay ji 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on February 25, 2012 at 6:19pm

डॉ अजय कुमार जी, एक अच्छी रचना और जन्म दिन दोनों की बधाइयाँ स्वीकार करें |

कृपया ध्यान दे...

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