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तुम .

मेरी चेतना के पंख

रूह के मंदिर में 

बजता भोर का शंख

मन की उड़ान 

देह की जान

बनती बिखरती कहानी

निर्मल निर्झर का

बहता हुआ सा पानी

फूलों की खुशबू

या वो पवन

जो लाती है वो जादू

जो बना देता है

मतवाला अक्सर .

तुम ही तो हो

ये सब .

फिर क्यों

कभी कभी

मैं हो जाता हूँ

तन्हा.

बताओ तो जरा .

 

रचयिता : डा अजय कुमार शर्मा

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 10, 2012 at 10:21pm

सुन्दर भाव .. . सुन्दर भाव संयोजन..  बधाई.

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