For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बलात्कार: उद्भव, विकास एवं निदान

शुरू में सब ठीक था
जब धरती पर

प्रारम्भिक स्तनधारियों का विकास हुआ
नर मादा में कुछ ज्यादा अन्तर नहीं था
मादा भी नर की तरह शक्तिशाली थी
वह भी भोजन की तलाश करती थी
शत्रुओं से युद्ध करती थी
अपनी मर्जी से जिसके साथ जी चाहा
सहवास करती थी
बस एक ही अन्तर था दोनों में
वह गर्भ धारण करती थी
पर उन दिनों गर्भावस्था में
इतना समय नहीं लगता था
कुछ दिनों की ही बात होती थी।

फिर क्रमिक विकास में बन्दरों का उद्भव हुआ
तब जब हम बंदर थे
स्त्री पुरुष का भेद ज्यादा नहीं होता था
लेकिन मादा थोड़ी सी कमजोर हुई
क्योंकि अब गर्भावस्था में
ज्यादा समय लगता था
तो उसे थोड़ा ज्यादा आराम चाहिए था
मगर नर और मादा
दोनों ही भोजन की तलाश में भटकते थे
साथ साथ काम करते थे।

फिर हम चिम्पांजी बने
मादा और कमजोर हुई
गर्भावस्था में और ज्यादा समय लगने लगा
वह ज्यादा  समय एक ही जगह पर बिताने लगी
नर और ज्यादा शक्तिशाली होता गया
क्रमिक विकास में।

फिर हम मानव बने
नारी को गर्भावस्था के दौरान
अब काफी ज्यादा समय घर पर रहना पड़ता था
ऊपर से बच्चों के जीवन की संभावना भी कम थी
तो ज्यादा बच्चे पैदा करने पड़ते थे
घर पर लगातार रहने से
उसके अंगो में चर्बी जमने लगी
स्तन व नितम्बों का आकार
पुरुषों से बिल्कुल अलग होने लगा
ज्यादा श्रम के काम न करने से
अंग मुलायम होते गये
और वह नर के सामने कमजोर पड़ती गई
धीरे धीरे उसका केवल एक ही काम रह गया
पुरुषों का मन बहलाना;
बदले में पुरुष अपने बल से

उसकी रक्षा करने लगे;

समय बदला,
पुरुष चाहने लगे कि एक ऐसी नारी हो
जो सिर्फ एक पुरुष के बच्चे पैदा कर सके,
इस तरह जन्म हुआ विवाह का
ताकि नारी एक ही पुरुष की होकर रह सके
और पुरुष जो चाहे कर सके,

एक दिन किसी पुरुष ने
किसी दूसरे की स्त्री के साथ
बलपूर्वक सहवास किया
अब स्त्री का पति क्या करता
इसमें नारी का कोई कसूर नहीं था
पर पुरुषों के अहम ने एक सभा बुलाई
उसमें यह नियम बनाया
कि यदि कोई स्त्री अपने पति के अलावा किसी से
मर्जी से या बिना मर्जी से
सहवास करेगी
तो वह अपवित्र हो जाएगी
उसको परलोक में भी जगह नहीं मिलेगी
उसे उसका पिता भी स्वीकार नहीं करेगा
पति और समाज तो दूर की बात है
क्योंकि पिता, पति और समाज के ठेकेदार
सब पुरुष थे
इसलिये यह नियम सर्वसम्मति से मान लिया गया
एक स्त्री ने यह पूछा
कि सहवास तो स्त्री और पुरुष दोनों के मिलन से होता है
यदि परस्त्री अपवित्र होती है
तो परपुरुष भी अपवित्र होना चाहिए
उसको भी समाज में जगह नहीं मिलनी चाहिए,
पर वह स्त्री गायब कर दी गई
उसकी लाश भी नहीं मिली किसी को
और इस तरह से बनी बलात्कार की
और स्त्री की अपवित्रता की परिभाषा
जिसके अनुसार

पुरुष कुछ भी करे मरना स्त्री को ही है।

फिर समाज में बलात्कार बढ़ने लगे
जिनका पता चल गया
उन स्त्रियों ने आत्महत्या कर ली
या वो वेश्या बना दी गईं
जी हाँ वेश्याओं का जन्म यहीं से हुआ
क्योंकि अपवित्र स्त्रियों के पास
इसके अलावा कोई चारा भी तो नहीं बचा था
और जिनका पता नहीं चला
वो जिन्दा बचीं रहीं
घुटती रहीं, कुढ़ती रहीं
पर जिन्दगी तो सबको प्यारी होती है
उनके साथ बार बार बलात्कार होता रहा
और वो जिन्दा रहने के लालच में,

चुपचाप सब सहती रहीं।
जी हाँ शारीरिक शोषण का उदय यहीं से हुआ
पुरुषों का किया धरा है सब
चिम्पांजियों और बंदरों में नर बलात्कार नहीं करते।

धीरे धीरे स्त्री के मन में डर बैठता गया
बलात्कार का
अपवित्रता का
मौत का
इतना ज्यादा
कि वो बलात्कार में मानसिक रूप से टूट जाती थी
वरना शरीर पर क्या फर्क पड़ता है
नहाया और फिर से वैसी की वैसी।

धीरे धीरे ये स्त्री को प्रताड़ित करने के लिए
पुरुषों का अस्त्र बन गया,
शारीरिक यातना झेलने की
स्त्रियों को आदत थी
गर्भावस्था झेलने के कारण,
पर मानसिक यातना वो कैसे झेलती
इसका उसे कोई अभ्यास नहीं था।

मगर मानसिक यातना झेलते झेलते

धीरे धीरे स्त्री ये बात समझने लगी
कि ये सब पुरुष का किया धरा है
उनके ही बनाये नियम हैं
और धीरे धीरे मानसिक यातना
सहन करने की शक्ति भी उसमें आने लगी
यह बात पुरुषों को बर्दाश्त नहीं हुई
फिर जन्म हुआ सामूहिक बलात्कार का
अब स्त्री ना तो छुपा सकती थी
ना शारीरिक यातना ही झेल सकती थी
और मानसिक यातना
तो इतनी होती थी
कि उसके पास दो ही रास्ते बचते थे
आत्महत्या का, या डाकू बनने का।

धीरे धीर क्रमिक विकास में
पवित्र और अपवित्र की परिभाषा ही
गड्डमड्ड होने लगी
झूठ समय का मुकाबला नहीं कर पाता
वो समय की रेत में दब जाता है
केवल सच ही उसे चीर कर बाहर आ पाता है
पवित्र और अपवित्र की परिभाषा
सिर्फ स्त्रियों पर ही लागू नहीं होती
यह पुरुषों पर भी लागू होती है
या फिर पवित्र और अपवित्र जैसा कुछ होता ही नहीं।

मुझे समझ में नहीं आता
पुरुष यदि इज्जत लूटता है
तो ज्यादा इज्जतदार क्यों नहीं बन जाता,
स्त्री की इज्जत उसके कुछ खास अंगों में क्यों रहती है
उसके सत्कार्यों में, उसके ज्ञान में क्यों नहीं,
बड़ी अजीब है ये इज्जत की परिभाषा

दरअसल ये पुरुष का अहंकार है
उसका अभिमान है
जो लुट जाता है
स्त्री पर कोई फर्क नहीं पड़ता

बलात्कार से केवल पुरुषों के अहं को ठेस लगती है
सदियों पुराने अहं को
जो अब उसके खून में रच बस गया है

सात साल की सजा से
या बलात्कारी को मौत देने से
कोई फायदा नहीं होगा

बलात्कार तभी बंद होंगे
जब पुरुष ये समझने लगेगा
कि बलात्कार
एक जबरन किये गये कार्य से ज्यादा कुछ नहीं होता,
और बलात्कार करके वो लड़की को सजा नहीं देता

लड़की की इज्जत नहीं लूटता
केवल अपने ही जैसे ही कुछ पुरुषों के
सदियों पुराने अहं को ठेस पहुँचाता है।

Views: 452

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by kanta roy on March 29, 2016 at 12:27pm

 गंम्भीर  विषय पर  आपका  यह  चिंतन सार्थक  रहा  है . पढ़ते  हुए  मन  में  क्षोभ , ग्लानी  पराकाष्ठा  तक  जा  पहुंची है . ये  क्रमिक विकास  जानवर  से मनुष्य होने  का ,बेहद  अफसोसजनक परिस्थिति  है . काश कि  हम  में  कोई  विकास  ना  हुआ  होता  !  काश  हम  सब  नर मादा स्तनधारी प्राणी  मात्र  ही  होते ,साथ  -साथ  आखेट पर  जाने  वाले  , काश .........! 

अचंभित  करती  हुई आपकी  ये  रचना आने  वाली  कई  दिनों  तक  मन  को  त्रास देती रहेगी  . सत्य को आवरण मुक्त करती हुई ......

बहुत  -बहुत  बधाई  आपको  इस  सार्थक  रचनाकर्म  के लिए  आदरणीय धर्मेन्द्र  कुमार  जी . 

Comment by asha pandey ojha on February 22, 2012 at 12:53pm

बदलाव दर बदलाव कठिन हुई जिंदगी का सटीक वर्णन 


कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"उस दफ़्तर में ये अविनाश है कौन? यह संकेत स्पष्ट नहीं हो सका। चपरासी है या बाबू? स्नेहा तो…"
5 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"कारण (लघुकथा): सरकारी स्कूल की सातवीं कक्षा में विद्यार्थी नये शिक्षक द्वारा ब्लैकबोर्ड पर लिखे…"
6 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"सादर नमस्कार आदरणीय। 'डेलिवरी बॉय' के ज़रिए पिता -पुत्र और बुज़ुर्ग विमर्श की मार्मिक…"
7 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदाब। लघु आकार की मारक क्षमता वाली लघुकथा से गोष्ठी का आग़ाज़ करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन…"
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"डिलेवरी बॉय  मई महीने की सूखी गर्मी से दिन तप गया था। इतने सारे खाने के पैकेट लेकर तीसरे माले…"
9 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीय मनन कुमार सिंह जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया लघुकथा हुई है। यह लघुकथा पाठक को गहरे…"
10 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"पहचान'मैं सुमन हूँ।' पहले ने बतया। '.........?''मैं करीम।' दूसरे का…"
11 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"स्वागतम"
17 hours ago
Nilesh Shevgaonkar joined Admin's group
Thumbnail

सुझाव एवं शिकायत

Open Books से सम्बंधित किसी प्रकार का सुझाव या शिकायत यहाँ लिख सकते है , आप के सुझाव और शिकायत पर…See More
18 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार। विलम्ब से उत्तर के लिए…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम्. . . . . गुरु
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आ. भाई धर्मेंद्र जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service