For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मेरे मन  !

तुमने अपनी खुशी खो दी ?

मायूस हो गये,

मुर्झा गये ?

किसी ने तुमको झिड़का

या दर्द दिया,

अपमानित, प्रताड़ित किया और

तुमने घुटने टेक दिये, क्यों ?

क्यों किसी की ओछी बातों से ,

अपशब्दों की बौछार से,

कठोर शब्दों के तीरों से

छलनी हो गये ?

कमज़ोर हो गये ?

समझना, वो शब्द

तुम्हारे लिए थे ही नहीं  

सिर्फ किसी को अपने

दिल की कड़वाहट निकालने का

माध्यम मिल गया था ।

सुना होगा, जो जिसके पास होता है,

वही तो देता है ?

जीवन हार मानने का नाम नहीं,

संघर्ष भी इसे मत समझना

मान अपमान से ऊपर उठकर,

शांत बन जाओ ।

उन, कड़वी बातों को

अपने ऊपर से, ऐसे गुज़र जाने दो

जैसे आवारा बादल,

बस! जैसे ही उन

घने काले बादलों की पर्त हटेगी

तुम सूरज की तरह निकल आना

नहाये, धोये से,

स्फूर्त तरोताज़ा ।

  • मोहिनी चोरडिया 

Views: 410

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by mohinichordia on January 21, 2012 at 6:56am

आप सभी का हार्दिक धन्यवाद 


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on January 7, 2012 at 2:42pm

आदरणीया मोहिनी जी, आपकी कविता मुक्तछंद में होने के बावजूद एक प्रवाह लिए हुए हैं. इस सन्देश परक रचना के लिए मेरा दिली साधुवाद स्वीकार करें. 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on January 7, 2012 at 11:05am

काश यह गुर हम सभी सीख पाते, जीवन कितना सरल हो जाता, सुन्दर रचना मोहिनी जी , बधाई स्वीकार करें |

Comment by Dr Ajay Kumar Sharma on January 6, 2012 at 7:37pm
Bahaut sunder prastuti..ek prernaprad rachna
Comment by satish mapatpuri on January 4, 2012 at 9:15pm

क्यों किसी की ओछी बातों से ,

अपशब्दों की बौछार से,

कठोर शब्दों के तीरों से

छलनी हो गये ?

कमज़ोर हो गये ?

आज के दौर में ऐसी ही सकारात्मक सोच की जरुरत है ..................... बहुत सुन्दर ........... दाद कुबूल फरमाएं मोहिनीजी
Comment by Sanjay Mishra 'Habib' on January 4, 2012 at 5:20pm

किसी ने तुमको झिड़का

या दर्द दिया,

अपमानित, प्रताड़ित किया और

तुमने घुटने टेक दिये, क्यों ?

सुन्दर सन्देश देती है आपकी रचना आदरणीया मोहिनी जी, इस सार्थक रचना के लिए सादर बधाई स्वीकारें...

Comment by Abhinav Arun on January 4, 2012 at 4:16pm
मन को तसल्ली देती रचना मोहिनी जी आज के दौर में इस मन को ही सोचिये क्या क्या सुनना - सहना पड़ता है | परन्तु सकारात्मक सोच ज़रूरी है | और आपकी कविता यही सन्देश देती है |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service