For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

रातो के हो गए है पुजारी
कि दिन की खबर नहीं है
पैसे की है ये दुनिया
मेरा ये शहर नहीं है
दिन में भी ये जलाते है बत्तियाँ इतना
ना जाने यहाँ अंधेरा है कितना
आदमी अपने साये पे भी शक करता है
हाथ हाथ मिलाने से डरता है

पैसो से हर चीज तोलने लगा हूँ
की मै भी पैसो की जुबा बोलने लगा हूँ
नीद बेचता हू बेचता हू सासे भी
बेचे है त्यौहार बेचीं है उदासी भी
हसी बेचीं है आँसू भी
एक दिन बिक रही थी जिंदगी
और मैंने बेच दी
हर चीज का है दाम 
दोस्ती बिकती है
हो जाती है मोहब्बत भी नीलाम

पैसो के दम रिश्ते है
पैसो के दम मकान 
पर कोई घर नहीं है
  क्योंकि ये मेरा शहर नहीं है
जहा चाय की दुकान
और  वडापाँव की गाड़ी थी
मौसी से अन्ना तक सबसे पहचान हमारी थी
उन्मुक्त परिंदा था
सुबह का बाशिंदा था
सूरज की सरपरस्ती में जिए 
अपने पंखो को हवा दी
खूब उड़े साँस फूली
मगर हौसला टूटा नहीं


इन दीवारों में किसे अपना कहे
जो पैसो से परे चाहे हमे 
दोस्ती जहा मतलबी ना हो 
हम बाज़ार में इतना रहे 
की रिश्ते बाजारू होगए
अब किसे अपना कहे 
अपनों के दम हौसला था
और हौसला जाता रहा 

कई बार सोचता हू हिम्मत जुटाऊँगा 
कुछ दिनों के लिए खुद को छुड़ाउँगा  
इस दिवाली घर जाऊंगा 
कुछ दिये जलाऊंगा 
कुछ रोशनी करूँगा 
कुछ मन का तम मिटाऊंगा 


: शशिप्रकाश सैनी

Views: 373

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by shashiprakash saini on December 31, 2011 at 12:21pm

हौसला आफजाई के लिए शुक्रिया मोहिनी  जी 

Comment by mohinichordia on December 31, 2011 at 11:26am

 खूबसूरत जज़्बात पिरोये हैं कविता मैं शशिप्रकाश जी  |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मनन कुमार सिंह जी। बोलचाल में दोनों चलते हैं: खिलवाना, खिलाना/खेलाना।…"
1 hour ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आपका आभार उस्मानी जी। तू सब  के बदले  तुम सब  होना चाहिए।शेष ठीक है। पंच की उक्ति…"
1 hour ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"रचना भावपूर्ण है,पर पात्राधिक्य से कथ्य बोझिल हुआ लगता है।कसावट और बारीक बनावट वांछित है। भाषा…"
1 hour ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदरणीय शेख उस्मानी साहिब जी प्रयास पर  आपकी  अमूल्य प्रतिक्रिया ने उसे समृद्ध किया ।…"
2 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदाब। इस बहुत ही दिलचस्प और गंभीर भी रचना पर हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह साहिब।  ऐसे…"
2 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"जेठांश "क्या?" "नहीं समझा?" "नहीं तो।" "तो सुन।तू छोटा है,मैं…"
4 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक स्वागत आदरणीय सुशील सरना साहिब। बढ़िया विषय और कथानक बढ़िया कथ्य लिए। हार्दिक बधाई। अंतिम…"
8 hours ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"माँ ...... "पापा"। "हाँ बेटे, राहुल "। "पापा, कोर्ट का टाईम हो रहा है ।…"
10 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"वादी और वादियॉं (लघुकथा) : आज फ़िर देशवासी अपने बापू जी को भिन्न-भिन्न आयोजनों में याद कर रहे थे।…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"स्वागतम "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on नाथ सोनांचली's blog post कविता (गीत) : नाथ सोनांचली
"आ. भाई नाथ सोनांचली जी, सादर अभिवादन। अच्छा गीत हुआ है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Admin posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।"ओबीओ…See More
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service