For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

(छंद - दुर्मिल सवैया)

जब मौसम कुंद हुआ अरु ठंड की पींग चढी, फहरे फुलकी
कटकाइ भरे दँत-पाँति कहै निमकी चटखार धरे फुलकी
तब जीभ बनी शहरी नलका, मुँह लार बहे, लहरे फुलकी
लफसाइ हुई पनियाइ हुई, लपिटाइ हुई, वह रे ! फुलकी  ||1||
 
खुनकी-खुनकी अस जाड़ि क मौसम में सहमा दिन भार लगै
उपटै सब बालक-वृंद जुड़ैं,  बन पाँत खड़े,  भरमार लगै 
घुलि जाय बताश जे पानि भरा मुँह-जीभ के बीच न सार लगै
अठ-रंग मसाल के स्वाद हैं नौ, तनि तींत भलै चटखार लगै  ||2||
 
चुप चाव से चाट रहे चुड़ुआ चखलोल बने घुरियावत हैं
हुनके मिलिगा तिसरी फुलकी, हिन एक लिये मुँह बावत हैं
कब आय कहौ अगिला फिर नंबर, जोहत हैं, चुभिलावत हैं
जब हाड़ के तोड़ सँ जाड़ पड़े,  लरिके रसना-सुख पावत हैं  ||3||

********************

--सौरभ 

********************

फुलकी - गोलगप्पे , गुपचुप, पानीपुरी, पानी-बताशे (इलाहाबाद परिक्षेत्र में गोलगप्पे को फुलकी कहते हैं) ; नलका - बम्बा , पानी की टोंटी ; खुनकी - सिहरन पैदा करने वाली ; उपटै - इकट्ठे आना , बहुतायत में होना ; सार - शेष बचा हुआ भाग , सिट्ठी ; तनि - कुछ , थोड़ा ; तींत - तीखा ; चड़ुआ - अंजुरी , हथेली का पात्र रूप ले लेना ; चखलोल - मुँह खोले होना , अक्सर चड़ियाँ चोंच खोले कुछ जोहती दीखती हैं ; घुरियाना - नज़दीक होने की क्रिया ; कुछ बार-बार करना ; हुनके - उनको ; हिन - ये , यह ; लरिके - बच्चे ; हाड़ - हड्डी ;  रसना - जीभ

*********

*********

Views: 3598

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 1, 2012 at 11:18am

भाई उमेश्वर जी, आपकी प्रतिक्रिया ने मुझे मोह लिया. जिस जुड़ाव से आपने इस रचना को स्वीकारा है इस हेतु मेरा हार्दिक धन्यवाद स्वीकारें. 

बचपन में फुलकी को हम सब भी गुपचुप कहते थे. .. सुनकर अच्छा लगा.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 1, 2012 at 11:12am

सतीश जी, आपको चटखार भरी फुलकी अच्छी लगी इस हेतु आपको हार्दिक धन्यवाद.  :-)))))

 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 1, 2012 at 11:11am

आदरणीय अम्बरीष भाईजी, आपकी टिप्पणी ने मुझे अतिरेक में डाल दिया है.

छंद विधा के अनुरूप आज मैं कुछ भी कहता हूँ तो नींव में मुझे आप दीखते हैं. उसपर से यदि लिखा हुआ पसंद आता है तो संतुष्टि उन्माद सरीखी लगती है !  ..

सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 1, 2012 at 11:07am

वीनस भाई, आपको फुलकी पसंद आयी, इस हेतु हार्दिक धन्यवाद .. .

Comment by Sanjay Mishra 'Habib' on January 1, 2012 at 9:52am

वाह! वाह! आदरणीय सौरभ भईया...

एक भी सवैय्ये को लगातार नहीं पढ़ पाया, हर बार मुह में भर आये पानी के कारण बीच में ही रुकना पडा, गटक के फिर आगे बढ़ा...

सचमुच! हमारे छंदों में जो प्रवाह और मधुरता है वह अभूतपूर्व है... बहुत आनंद आया आपके सवैय्यों को पढ़ के, या कहूं कि "पी के"

नूतन वर्षागमन पर सादर बधाईया और मंगलकामनाएं.

Comment by Shubhranshu Pandey on January 1, 2012 at 9:51am

हुनके मिलिगा तिसरी फ़ुलकी, हिन एक लिये मुंह बावत हैं....

इस बात पर तो खोमचे वाले से झगडा हो जाये... 

बहुत खूब रचना.

Comment by Dr. Umeshwar Shrivastava on January 1, 2012 at 6:41am

सर जी ! सबसे पहले तो नववर्ष की बधाई स्वीकार करें। ये सवैये तो सचमुच लाजवाब हैं। 24 वर्णों वाली चार-चार पंक्तियों की यह छंदबद्ध रचना और इसमें निहित बिंब (चाक्षुष, नासिक्य, घ्राण, जिह्वा आदि), उपमा, रूपक, अनुप्रास, पुनरुक्ति जैसे अलंकार, देशज प्रयोग, कहाँ तक बखान करूँ ? एक-एक पंक्तियों की सराहना करने बैठूँ तो पूरा पृष्ठ भर जाए। क्या भाव सौंदर्य, क्या शिल्प सौंदर्य, सचमुच उत्कृष्ट । हमारे छत्तीसगढ़ में फुलकी को गुपचुप कहा जाता है।

Comment by satish mapatpuri on January 1, 2012 at 3:46am

खुनकी-खुनकी अस जाड़ि क मौसम में सहमा दिन भार लगै उपटै सब बालक-वृंद जुड़ैं,  बन पाँत खड़े,  भरमार लगै घुलि जाय बताश जे पानि भरा मुँह-जीभ के बीच न सार लगै अठ-रंग मसाल के स्वाद हैं नौ, तनि तींत भलै चटखार लगै

अरे वाह, तारीफ़ करूँ क्या उसकी, जिसने तुम्हें बनाया .................... जवानी की अनुभूति याद रखने के लिए शुक्रिया आदरणीय सौरभ जी ................... अनुपम ... अतुलनीय

Comment by Er. Ambarish Srivastava on January 1, 2012 at 1:40am


वाह वाह वाह मित्र सौरभ जी ! आपके द्वारा रचे गये तीनों के तीनों दुर्मिल लाज़वाब लगे ! बहुत-बहुत बधाई मित्र ! फुलकी देखकर वाकई मुँह में पानी आ गया भाई ! हमारे यहाँ पर इनको बताशे के नाम से जाना जाता है ! :-)))

Comment by Shanno Aggarwal on January 1, 2012 at 1:34am

सौरभ जी, आप खुद इतने अच्छे इंसान हैं कि मैं आपकी गोलगप्पे वाली इस रचना पर अपने भावों को इस तरह लिख सकी. समझ सकती हूँ कि रचना लिखते समय मुँह में पानी आने की आपको भी समस्या रही होगी....खासतौर से गणेश की ये बताशे वाली फोटू देखकर. और आशा करती हूँ कि बताशे वाले को कहीं पता लग गया कि उसके बताशों का ओ बी ओ पर प्रचार हो रहा है तो कहीं उनकी कीमत ना बढ़ा दे. खुदा खैर करे खाने वालों की. 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
13 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"अनुज बृजेश , प्रेम - बिछोह के दर्द  केंदित बढ़िया गीत रचना हुई है , हार्दिक बधाई आदरणीय…"
20 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - यहाँ अनबन नहीं है ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय रवि भाई  ग़ज़ल पर उपस्थिति  हो  उत्साह वर्धन  करने के लिए आपका…"
20 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - यहाँ अनबन नहीं है ( गिरिराज भंडारी )
"अनुज बृजेश ,  ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका आभार , मेरी कोशिश हिन्दी शब्दों की उपयोग करने की…"
20 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - यहाँ अनबन नहीं है ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय अजय भाई ,  ग़ज़ल पर उपस्थिति हो  उत्साह वर्धन करने के लिए आपका आभार "
20 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - यहाँ अनबन नहीं है ( गिरिराज भंडारी )
"आ. नीलेश भाई ग़ज़ल पर उपस्थिति और उत्साह वर्धन के लिए आपका आभार "
20 hours ago
Ravi Shukla commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"आदरणीय अजय जी किसानों को केंद्र में रख कर कही गई  इस उम्दा गजल के लिए बहुत-बहुत…"
yesterday
Ravi Shukla commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आदरणीय नीलेश जी, अच्छी  ग़ज़ल की प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें. अपनी टिप्पणी से…"
yesterday
Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - यहाँ अनबन नहीं है ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाई जी नमस्कार ग़ज़ल का अच्छी प्रयास है । आप को पुनः सृजन रत देखकर खुशी हो रही…"
yesterday
Ravi Shukla commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आदरणीय बृजेश जी प्रेम में आँसू और जदाई के परिणाम पर सुंदर ताना बाना बुना है आपने ।  कहीं नजर…"
yesterday
बृजेश कुमार 'ब्रज' posted a blog post

गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा

सार छंद 16,12 पे यति, अंत में गागाअर्थ प्रेम का है इस जग मेंआँसू और जुदाईआह बुरा हो कृष्ण…See More
Thursday
Deepak Kumar Goyal is now a member of Open Books Online
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service