For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कविता : - मांद से बाहर

कविता : -  मांद से बाहर !
 
चुप  मत रह तू खौफ से  
कुछ बोल 
बजा वह ढोल 
जिसे सुन खौल उठें सब  
 
ये चुप्पी मौत
मरें क्यों हम
मरे सब
 
हैं जिनके हाँथ रंगे से
छिपे दस्तानों भीतर
 
जो करते वार
कुटिल सौ बार टीलों के पीछे छिपकर
तू उनको मार सदा कर वार 
निकलकर मांद से बाहर
 
कलम को मांज 
हो पैनी धार
सरासर वार सरासर वार
पड़ेंगे खून के छींटे
 
तू उनको चाट
तू काली बन
जगाकर काल
पहन ले मुंड की माला
ह्रदय में भर ले ज्वाला 
 
मशअलें बुझ न जाएँ
कंस खुद मर न जाएँ
तू पहले चेत
बिछा दे खेत
भले तू एकल एकल
 
उठा परचम
दिखा दमखम
निरर्थक न हो बेकल
यहाँ कुरुक्षेत्र सजा है
युद्ध भी एक कला  है
 
नहीं उम्मीद न आशाएं 
दिखा तलवार का जौहर 
बना टोली चला बोली 
तू सबको एक तो कर ले 
सभी पीडाएं हर ले 
 
तू है दाधीच 
भुजाएं भींच 
एक हर बल को कर ले 
यहाँ शोषित जो जन है 
तिरस्कृत हाशिये पर 
तू उनका क्यों न वर ले 
 
नहीं अब देव आयेंगे 
सनातन सत्य अड़ा है 
प्रश्न दर  प्रश्न खड़ा है 
सगर अतृप्त रहें न 
भागीरथ यत्न तो कर ले 
 
हाँ अब  कंदील जलेंगे 
चोटी पर पाँव चढ़ेंगे 
आग को गर्भ से छीनो 
तीर बिखरे हैं बीनो 
छली ने हमें छला है 
युद्ध भी एक कला है 
 
चन्द्रगुप्तों अब जागो 
न तुम तो  सच से भागो 
गुरु की खोज क्या करना 
चपल  अब खुद है बनना 
त्याग बलिदान ध्येय हो 
राष्ट्र हित मात्र प्रेय हो 
 
किताबें बहुत हो चुकीं 
अमल करने का मौसम 
यही और यही वक़्त है 
उबलता आज रक्त है 
सदा था और आज भी 
मान जन बल सशक्त है 
 
न अब कवितायेँ होंगी 
शब्द अब युद्ध करेंगे 
नहीं तर्कों का भय अब 
न टूटेगी ये लय  अब 
समीक्षा का रथ लेकर 
चतुर चापाल चला है 
तो हम तैयार खड़े है 
 
आगे बढ़ कर हो हमला 
छाती चढ़ कर हो हमला 
अपने मस्तक पर हमने 
राष्ट्र हित रक्त मला है 
युद्ध भी एक कला है 
 
 
 
                       -  अभिनव अरुण
                          [14122011]
                   संशोधित { 02032013 }

Views: 876

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Shyam Bihari Shyamal on January 1, 2012 at 6:33am

वाह...  अरुण जी, बहुत जीवंत रचना है। बधाई और शुभकामनाएं... 

Comment by Abhinav Arun on December 18, 2011 at 9:15pm
many Thanks to You Arun ji
Comment by Arun Sri on December 18, 2011 at 1:50pm
उठा परचम
दिखा दमखम
निरर्थक न हो बेकल
यहाँ कुरुक्षेत्र सजा है
युद्ध भी एक कला  है
कलम को हथियार बना कर क्या खूब युद्ध कला का परिचय दिया है आपने !
Comment by Abhinav Arun on December 18, 2011 at 6:38am
Adarniy Shri Saurabh ji & Shri Ashish ji hardik abhaar is rachna aur uski vishay vastu ke prati samarthan ke liye.
Comment by आशीष यादव on December 18, 2011 at 6:23am

अरुण सर, 

आप हर बार 
एक जोरदार 
नई कविता के संग आते हैं|
कलम की धार,
जैसे तलवार,
कि सब में जोश बिछा जाते हैं|
कलम को नमन 
और राउर को,
जो हिम्मत सख्त दिखा जाते हैं|
बहुत अच्छी  लगी आपकी ये कविता| मै आपके ऊपर कविता लिखने से नहीं रह सका|
नमन 

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 17, 2011 at 10:40pm

अद्भुत रचना ! जिन द्रोहियों की बात यहाँ हुई है उनकी मौज़ूदग़ी किसी क्षेत्र विशेष में न हो रह कर विस्तारित है. उनके प्रति रचनाकार का आक्रोश मात्र भावनात्मक न हो कर तथ्यात्मक है. इस आक्रोश में बीज है जिसकी अँकुरण प्रक्रिया उबाल पर है. रचना की विशेषता है कि यह स्पष्ट करती कि उगना मात्र आत्मजीवी प्रक्रिया नहीं, एक विधि है. आक्रोश स्वतःस्फुर्त अवश्य होता है, किन्तु प्रतिफलकारक तभी हो सकता है जब चैनेलाइज़ हो या किया जाय ! ..बहुत खूब !!

अभिनवजी, नये तेवर की इस रचना के लिये आपका हार्दिक अभिनन्दन तथा बधाइयाँ.   शुभकामनाएँ.

 

Comment by Abhinav Arun on December 16, 2011 at 1:58pm

अहा एक प्रतिक्रिया तो आई आप फर्स्ट हुए राजपूत साहब हार्दिक आभार आपके उत्साहवर्धक शब्दों के लिए !! स्नेह बना रहे !!

Comment by AK Rajput on December 16, 2011 at 1:29pm
कलम को मांज 
हो पैनी धार
सरासर वार सरासर वार
पड़ेंगे खून के छींटे
,
बहुत ही लह्बध और शानदार रचना  

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"सभी सदस्यों से रचना-प्रस्तुति की अपेक्षा है.. "
14 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। लम्बे अंतराल के बाद पटल पर आपकी मुग्ध करती गजल से मन को असीम सुख…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Nov 17
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Nov 17
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Nov 17
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Nov 17
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Nov 17

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service