तुमसे क्या उम्मीद करूँ, तुम दर्द बांटते रहते हो,
देश जले या लोग मरे, तुम माल काटते रहते हो!
तुम नेता हो, नवनिर्मित हो बस अपने सुख की सोचो तुम,
खून पसीना जनता का, जैसे चाहे बेचो तुम!
सत्ता के गलियारों में जहाँ धूम दिखावे की होती है,
आम आदमी में ये जंग बस रोटी के लिए होती है!
क्या सुख सुविधाएँ, सम्पन्नता सब देश प्रेम से आते है?
क्यों आम आदमी ही इस दुनिया में देशद्रोही कहलाते है?
-"सुभाष"
Comment
आपके व्यंग्य में उचित दर्द है जो एक जागरुक रचनाधर्मी की विशेषता है. बधाई.
दौर की विडम्बनाओं परगहरा आक्षेप | प्रभावी रचना के लिये बधाई आपको !!
behtareen..aisa hi likhte rahe
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