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मैं शिक्षक हूँ.......... (शिक्षक -दिवस पर विशेष )

शिक्षा ही सबसे उत्तम धन,और ना धन कोई दूजा है.
शिक्षक होते वन्दनीय, और गुरु -श्रद्धा ही पूजा है.
जिस समाज में शिक्षक का,सम्मान नहीं होता है.
उस समाज में उन्नति और, उत्थान नहीं होता है.
है सौभाग्य कि मैं शिक्षक हूँ, मैं समाज को बतालाउंगा .
क्या महत्तव शिक्षा -शिक्षक का, मैं समाज को  सिखालाउंगा
मैं शिक्षक हूँ - शिक्षक का, मुझको फ़र्ज़ निभाना है.
लौ शिक्षा की गाँव -गाँव, और घर -घर तक ले जाना है.
मैं निर्माता हूँ भारत का, देश से वादा करता हूँ.
अब कोई अनपढ़ ना होगा,यह  संकल्प मैं करता हूँ.
मैनें सोच लिया शिक्षा को, हर घर तक पहुँचाऊँगा.
जो बच्चे स्कूल ना आते ,उन तक खुद मैं जाऊँगा.
अब समुदाय के पास मुझे, विद्धयालय को ले जाना है.
लौ शिक्षा की गाँव -गाँव, और घर -घर तक ले जाना है.
मेरी योजना है कि मैं, समुदाय से मिलकर बात करूँ.
बच्चों के माँ-बाप को इस, अभियान में अपने साथ करूँ.
चाहे जाति-धर्म कुछ भी हो,मेरे लिए समान सभी हैं.
मैं शिक्षक हूँ -अभिभावक हूँ,मेरी ही संतान सभी हैं.
मुझको इनका साथी बनकर ही इनको अपनाना है.
 
                          गीतकार -- सतीश मापतपुरी

 

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Comment by satish mapatpuri on September 7, 2011 at 12:45am

इस उद्गार के लिए आभार श्रीवास्तव साहेब.

Comment by Er. Ambarish Srivastava on September 7, 2011 at 12:15am

//मैं शिक्षक हूँ -अभिभावक हूँ,मेरी ही संतान सभी हैं.

मुझको इनका साथी बनकर ही इनको अपनाना है.//
बहुत खूबसूरत भावों से युक्त गीत रचा है भाई मापतपुरी जी ! कृपया इस हेतु बधाई स्वीकारें !
Comment by satish mapatpuri on September 6, 2011 at 11:49pm

गुरूजी और अरुणजी आप दोनों का आभार.

Comment by Abhinav Arun on September 6, 2011 at 3:42pm

bahut sundar shabdon men ek shikshak ke kartavya aur dayitvon ko abhivyakt kiya hai aapne ! ek saarthak aur sashakt rachna ! badhai !!

Comment by Rash Bihari Ravi on September 6, 2011 at 3:26pm

bahut khubsurat sir ji

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