For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

नर्मदाष्टक : २ रीवानरेश श्री रघुराज सिंह : हिन्दी पद्यानुवाद द्वारा संजीव 'सलिल'

नर्मदाष्टक : २ रीवानरेश श्री रघुराज सिंह : हिन्दी पद्यानुवाद द्वारा...

img1090522040_1_4.jpg

हिन्दी काव्यानुवाद सहित नर्मदाष्टक : २                                                                                

            रीवानरेश श्री रघुराज सिंह विरचितं नर्मदाष्टकं

 गिरींद्र मेकलात्मजे गिरीशरूपशोभिते, गिरीशभावभाविते सुरर्षिसिद्धवंदिते.
 अनेकधर्मकर्मदे सदानृणा सदात्मनां, सुरेंद्रहर्षसंप्रदे, नमामि देवी नर्मदे .१. 

रसालताल सुप्रियाल, संविशालमालिते, कदंब निंब कुंद वृंद, भृंगजालजालिते.
शरज्जलाभ्रसंप्लवेह्य, घघ्नजीवशर्मदे, विषघ्नभूषसुप्रिये, नमामि देवी नर्मदे .२.

मलात्मनां घनात्मनां, दुरात्मनां शुचात्मनां, मजापिनां प्रतापिनां प्रयापिनां सुरापिनां.
अनिष्टकारिणां वनेविहारिणां प्रहारिणां, सदा सुधर्म वर्मदे, नमामि देवी नर्मदे .३. 

वलक्षलक्षलक्षिते सकच्छकच्छपान्विते, सुपक्षपक्षिसच्छ्टे ह्यरक्षरक्षणक्षमे.
मुदक्षदक्षवांक्षिते विपक्षयक्षपक्ष्दे, विचक्षणक्षणक्षमे, नमामि देवी नर्मदे .४.

तरंगसंघसंकुले वराहसिंहगोकुले, हरिन्मणीन्द्रशाद्वले प्रपातधारयाकुले.
मणीन्द्रनिर्मलोदके फणीन्द्रसेंद्रसंस्तुते, हरेस्सुकीर्तिसन्निभे, नमामि देवी नर्मदे .५.  

पुराणवेदवर्णिते विरक्तिभक्तिपुण्यदे, सुयागयोग सिद्धिवृद्धिदायिके महाप्रभे.
अनन्तकोटि कल्मशैकवर्तिनां समुद्धटे, समुद्रके सुरुद्रिके, नमामि देवी नर्मदे .६. 

महात्मनां सदात्मनां, सुधर्मकर्मवर्तिनां, तपस्विनां यशस्विनां मनस्विनां मन:प्रिये.
मनोहरे सरिद्वरे सुशंकरेभियांहारे,धराधरे जवोद्भरे, नमामि देवी नर्मदे .७.

शिवस्वरूपदयिके, सरिदगणस्यनायिके, सुवान्छितार्थधायिके, ह्यमायिकेसुकायिके.
सुमानसस्य कायिकस्य, वाचिकस्य पाप्मान:, प्रहारिके त्रितापहे, नमामि देवी नर्मदे .८.

रेवाष्टकमिदं दिव्यं, रघुराजविनिर्मितं, अस्य प्रपठान्माता नर्मदा मे प्रसीदतु.
मितेसंवत्सरेपौषे, गुणब्रम्हनिधींदुभि:, सितेसम द्वितीयायां निर्मितां नर्मदाष्टकं... ९. 

         इति रीवानरेश श्री रघुराज सिंह विरचितं नर्मदाष्टकं सम्पूर्णं

रीवानरेश श्री रघुराज सिंह रचित नर्मदाष्टक : हिन्दी पद्यानुवाद द्वारा संजीव 'सलिल'

              हे कन्या गिरीन्द्र मेकलकी!, हे गिरीश सौंदर्य सुशोभा!!,
            हे नगेश भाव अनुभावित!, सुर-ऋषि-सिद्ध करें नित सेवा.
              सदा सदात्मा बनकर नरकी, नाना धर्म-कर्म की कर्ता!!.
               हर्ष प्रदाता तुम सुरेंद्रकी, नमन हमारा देवि नर्मदा.१.

               मधुर रसभरे वृक्ष आम के, तरुवर हैं सुविशाल ताल के.
            नीम, चमेली, कदमकुञ्ज प्रिय, केंद्र भ्रमर-क्रीडित मराल से.
            सलिल-शरद सम सदा सुशीतल, निर्मल पावन पाप-विनाशक.
            विषपायी शिवशंकर को प्रिय, नमन हमारा देवि नर्मदा.२.
             
            घातक, मलिन, दुष्ट, दुर्जन या, जपी-तपी, पवन-सज्जन हों.
             कायर-वीर, अविजित-पराजित, मद्यप या कि प्रताड़ित जन हों.
              अनिष्टकारी विपिनबिहारी, प्रबलप्रहारी सब जनगण को.
               देतीं सदा सुधर्म कवच तुम, नमन हमारा देवि नर्मदा.३.

           अमल-धवल-निर्मल नीरा तव, तट कच्छप यूथों से भूषित.
             विहगवृंदमय छटा मनोहर, हुए अरक्षित तुमसे रक्षित.
                मंगलहारी दक्षप्रजापति, यक्ष, विपक्षी तव शरणागत.
            विद्वज्जन को शांति-प्रदाता, नमन हमारा देवि नर्मदा.४.

              जल-तरंगके संग सुशोभित, धेनु वराह सिंहके संकुल.
       मरकत मणि सी घास सुकोमल, जलप्रपात जलधार सुशोभित.
          मनहर दर्पण उदक समुज्ज्वल, वंदन करें नाग, सुर, अधिपति.
              हो श्रीहरिस्तुति सी पावन, नमन हमारा देवि नर्मदा.५.

            वेद-पुराणों में यश वर्णित, भक्ति-विरक्ति पुण्य-फलदायिनी.
              यज्ञ-योग-फल सिद्धि-समृद्धि, देनेवाली वैभवशालिनी.
              अगणित पापकर्मकर्ता हों, शरण- करें उद्धार सर्वदा-
             उदधिगामिनी, रूद्रस्वरूपा, नमन हमारा देवि नर्मदा.६.

           करें धर्ममय कर्म सदा जो, महा-आत्म जन आत्मरूप में.
        तपस्वियों को, यशास्वियों को, मनस्वियों को, प्रिय स्वरूपिणे!.
            मनहर पावन, जन-मन-भावन, मंगलकारी भव-भयहारी.
              धराधार हे! वेगगामिनी, नमन हमारा देवि नर्मदा.७.

        श्रेष्ठ सुसरिता, नदी-नायिका, दात्री सत-शिव-सुंदर की जय.
         मायारहित, सुकायाधारिणी,वांछित अर्थ-प्रदाता तव जय!!.
             अंतर्मन के, वचन-कर्म के, पापों को करतीं विनष्ट जो-.
        तीन ताप की हरणकारिणी, नमन हमारा देवि नर्मदा.८.

           रीवा-नृप रघुराज सिंह ने, संवत उन्नीस सौ तेरह में.
         पौष शुक्ल दूजा को अर्पित, किया शुभ अष्टक रेवा पद में.
        भारत-भाषा हिंदी में, अनुवाद- गुँजाती 'सलिल' लहर हर.
        नित्य पाठ सुन देतीं शत वर, नमन हमारा देवि नर्मदा.९.

श्रीमदआदिशंकराचार्य रचित, संजीव 'सलिल' अनुवादित नर्मदाष्टक पूर्ण.

Views: 729

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहा दसक- झूठ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। दोहों पर आपकी उपस्थिति और प्रशंसा से लेखन सफल हुआ। स्नेह के लिए आभार।"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . पतंग
"आदरणीय सौरभ जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार आदरणीय "
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"आदरणीय सौरभ जी सृजन के भावों को मान देने एवं सुझाव का का दिल से आभार आदरणीय जी । "
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . जीत - हार
"आदरणीय सौरभ जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक प्रतिक्रिया एवं अमूल्य सुझावों का दिल से आभार आदरणीय जी ।…"
Tuesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। सुंदर गीत रचा है। हार्दिक बधाई।"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आ. भाई सुरेश जी, अभिवादन। सुंदर गीत हुआ है। हार्दिक बधाई।"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।भाई अशोक जी की बात से सहमत हूँ। सादर "
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"दोहो *** मित्र ढूँढता कौन  है, मौसम  के अनुरूप हर मौसम में चाहिए, इस जीवन को धूप।। *…"
Monday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"  आदरणीय सुशील सरना साहब सादर, सुंदर दोहे हैं किन्तु प्रदत्त विषय अनुकूल नहीं है. सादर "
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सादर, सुन्दर गीत रचा है आपने. प्रदत्त विषय पर. हार्दिक बधाई स्वीकारें.…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"  आदरणीय सुरेश कुमार 'कल्याण' जी सादर, मौसम के सुखद बदलाव के असर को भिन्न-भिन्न कोण…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . धर्म
"आदरणीय सौरभ जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय "
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service