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कौरव पांडव मिल चीर खीचते ,
सदन खड़ी बेचारी द्रोपदी बनकर,
हाथ जोड़े लुट रही थी वो अबला,
कृष्ण ना दिखे किसी के अन्दर ,

चुनाव का चौपड़ है बिछने वाला ,
शकुनी चलेगा चाल,पासे फेककर,
खेलेंगे खेल दुर्योधन दुश्शाशन ,
होगा खड़ा शिखंडी भेष बदलकर,

हे!जनता जनार्दन अब तो जागो,
रक्षा करो कृष्ण तुम बनकर,
दिखाओ,तुम्हे भी आती है बचानी आबरू ,
"बागी" नहीं जीना शकुनी का पासा बनकर,

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Comment by baban pandey on July 21, 2010 at 8:40pm
गणेश भाई ..इस चुनावी चौपड़ का बिगुल बज गया है ...और सदन द्रौपदी बन कर अपना चिर खिचवा रही है ..राजनितिक माहौल का बड़ा ही अच्चा चित्रण है ..और कृष्ण तो अब जनता -जनार्दन ही बन सकती है ....THANKS A LOT
Comment by ABHISHEK TIWARI on July 21, 2010 at 8:33pm
हरी बगिया मे कांट बहुत है,
पर गुलाब है इनके बीच ,
सब दुर्योधन और दुःशासन,
ना ढुंढ़ो कृष्ण आप इनके बीच,
इस गुलाब की गठरी को ,
मत छोड़ो तुम इनके बीच,
ना छोड़ेंगे ये सब मिल,
बना देंगे सब मिल उसको,
जुआ और भोग की चीज़.

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