For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आवाज़ देती हैं ( ग़ज़ल)

मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन

1222/1222/1222/1222

कहीं भी जाइए रूस्वाइयाँ आवाज़ देती हैं

बुरे कर्मों की सब परछाइयाँ आवाज़ देती हैं

 कभी चिड़िया कभी गुड़िया कभी लख़्त-ए-जिगर कहकर

मुझे रस्मों की सब मजबूरियाँ आवाज़ देती हैं

बुलंदी पर पहुँचता है जो कोई अपनी मिहनत से 

जहाँ भर की उसे शाबाशियाँ आवाज़ देती हैं

भले ही आज होती हैं समानधिकार की बातें

लगी सदियों की सब पाबंदियाँ आवाज़ देती हैं

हताशा ज़िंदगी को जब कभी ख़ामोश है करती
लुढक कर ज़ह्र की तब शीशियाँ आवाज़ देती हैं

बिना मर्ज़ी बदन सौंपे विवश फेरों से होकर जो
छिपी तकियों में उसकी सिसकियाँ आवाज़ देती हैं

चली आती है अपने ख़्वाब अक्सर तोड़कर "राखी"

करे भी क्या जो ज़िम्मेदारियाँ आवाज़ देती है

(मौलिक,अप्रकाशित)

Views: 269

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Rakhee jain on November 29, 2022 at 7:46pm

आदरणीय जैफ़ जी बेहद शुक्रिया आपका

जी आदरणीय के निर्देशों को ध्यान में रखते हुए सुधार का प्रयास अवश्य करूंगी

Comment by Rakhee jain on November 29, 2022 at 7:44pm

आदरणीय समर कबीर साहब आपके द्वारा दिए गए वक्त और मार्गदर्शन के लिए हृदय से आभारी हूं

सुधार किए हैं आदरणीय  

मेरा सौभाग्य है कि आपका मार्गदर्शन प्राप्त हो रहा है 

Comment by Zaif on November 29, 2022 at 6:30pm

आ. राखी जी, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है। आ. समर सर जी की इस्लाह क़ाबिल-ए-ग़ौर है। सादर।

Comment by Samar kabeer on November 24, 2022 at 6:41pm

मुहतरमा राखी जी आदाब, ओबीओ पटल पर आपका स्वागत है I 

ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें I  ग़ज़ल के साथ उसके अरकान भी लिख दिया करें इससे सीखने वालों के लिए आसानी होती  है  I अब आते हैं आपकी ग़ज़ल की तरफ़ I 

'वतन की मिट्टी की ख़ातिर बदन की मिट्टी हो कुर्वां
उठा कर सर अगर ग़द्दारियाँ आवाज़ देती हैं'----इस शे`र के दोनों मिसरों में रब्त  नहीं है , देखिएगा  I 

'ढली रस्मों में सब मजबूरियाँ, आवाज़ देती हैं'---इस मिसरे में 'ढली' शब्द उचित नहीं है , उचित लगे तो इसकी जगह "मुझे" कर सकती हैं , और 'में' की जगह "की" शब्द उचित होगा , विचार करें I 

'बुलंदी पर पहुँचता जो बनाकर ख़ुद को है क़ाबिल
जहां पर भी रहे शाबाशियाँ आवाज़ देती है'----इस शे`र का वाक्य विन्यास ठीक नहीं उचित लगे तो इसे यूँ कहें :-

"बुलंदी पर पहुँचता है जो कोई अपनी मिहनत से 

जहाँ भर की उसे शाबाशियाँ आवाज़ देती हैं "

'तराजू ले अदालत में वो पट्टी बांध रहती और
क़तारों में सिसकती अर्जियाँ आवाज़ देती हैं'---इस शे`र का भाव स्पष्ट नहीं , कौन पट्टी बाँध रहती है? दोनों मिसरों में रब्त नही नहीं है , वाक्य विन्यास भी ठीक नहीं इस पर विचार करें I 

'भले ही आज होती हैं समानधिकार की बातें
लगी सदियों की सब पाबंदियाँ आवाज़ देती हैं'--- इस शे`र के दोनों मिसरों में रब्त नहीं है देखिएगा I 

'लुड़ककर ज़हर की तब शीशियाँ आवाज़ देती हैं'---इस मिसरे में 'लुड़ककर'  को "लुढक कर" और 'ज़हर' को "ज़ह्र" लिखें 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"ज़िन्दगी जी के कुछ मिला तो नहीं मौत आगे का रास्ता तो नहीं. . मेरे अन्दर ही वो बसा तो नहीं मैंने…"
58 minutes ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"आदरणीय जयहिन्द रायपुरी जी आयोजन का उद्घाटन करने बधाई.ग़ज़ल बस हो भर पाई है. मिसरे अधपके से हैं…"
1 hour ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"देखकर ज़ुल्म कुछ हुआ तो नहीं हूँ मैं ज़िंदा भी मर गया तो नहीं ढूंढ लेता है रंज ओ ग़म के सबब दिल मेरा…"
11 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"सादर अभिवादन"
11 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"स्वागतम"
11 hours ago
Admin posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-129 (विषय मुक्त)

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।प्रस्तुत…See More
12 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"जय-जय "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आपकी रचना का संशोधित स्वरूप सुगढ़ है, आदरणीय अखिलेश भाईजी.  अलबत्ता, घुस पैठ किये फिर बस…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी, आपकी प्रस्तुतियों से आयोजन के चित्रों का मर्म तार्किक रूप से उभर आता…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"//न के स्थान पर ना के प्रयोग त्याग दें तो बेहतर होगा//  आदरणीय अशोक भाईजी, यह एक ऐसा तर्क है…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, आपकी रचना का स्वागत है.  आपकी रचना की पंक्तियों पर आदरणीय अशोक…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपकी प्रस्तुति का स्वागत है. प्रवास पर हूँ, अतः आपकी रचना पर आने में विलम्ब…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service