प्रथम प्रणाम उन मात-पिता को, जिन्होंने मुझको जन्म दिया
शीर्ष प्रणाम उन गुरुजनों को, ज्ञान का जिन्होंने आशीष दिया
फिर प्रणाम उन पूर्वजों को, मैं जिनका वंशज बनकर जन्मा
शेष प्रणाम उन मित्रजनों को, जिनसे है मुझको प्रेम घना
मैं न भुला उन बहनो को, राखी जिसने बांधी थी
जिसकी सदा रक्षा करने की, मैंने कसमें खाई थी
छोटे-बड़े सब भाई मे,रे हृदय में सदा हीं बसते है
मुझसे करते प्रेम बहुत वो, पलकों पर मुझको रखते है
पाती मेरी सब तक पहुंचे, सबको स्मरण ये हो जाए
सबसे मेरा है नाता गहरा, कोई ना विस्मित होने पाये
माता से विनती है मेरी, मोह ना टूटे मुझसे तेरी
चाहे जो कुछ भी हो जाये, नैन ना तेरे रोने पाये
तूने ही राह दिखाई थी, मेरे मन मे ज्योत जलायी थी
राष्ट्र प्रेम हीं बड़ा धर्म है, बात तूने हीं समझाई थी
तेरी ही प्रेरणा से मैं, एक सिपाही बन पाया
सबसे पहले मातृ भूमि, है यही प्रतिज्ञा कर पाया
तेरे प्रति जो फर्ज़ है मेरा, दूध का जो भी कर्ज़ है मेरा
इस बार चुका ना पाऊँगा, मैं वापस आ ना पाऊँगा
हे ताँत तुम्हें सराहु क्या, मन की बात बताऊँ क्या
सारी उम्र ना कह पाया जो, आज वही कह जाऊँ क्या
धैर्य तुम्ही से पाया है, संयम भी अपनाया है
तेरी ही छाया मे पलकर, ये चरित्र मेरा बन पाया है
देश का सिर ना झुकने पाये, ये तुमने पाठ पढ़ाया है
उन सिखों ने हीं आज मुझे, इस काबिल बनाया है
ज्ञान गुरु से पाकर मैंने, सही गलत को पहचाना
कर्म हीं मेरा सच्चा धर्म है, सबसे पहले उसको जाना
आप सभी का कृतज्ञ रहूँगा, आप सबका मैं आभारी हूँ
लेकिन इस जनम के खातिर, मैं बस सबका ऋणधारी हूँ
पूर्वजों से आग्रह है मेरा, अब स्थान मेरा बनाए वो
यमलोक में मेरा स्वागत करने, स्वयं चलकर आए वो
मैंने आपके वंश प्रथा को, आगे हीं बढ़ाया है
जहां ध्वज को खड़ा किया था, उसे ऊंचा और उठाया है
अच्छा अब मैं चलता हूँ, यमलोक के लिए निकालना है
पथ ताकते मित्र सिपाही, उनके संग भी टहलना है
ना करना तुम सब क्रंदन, खत्म हुआ जो मेरा ये तन
देश प्रेम मे कर दूँ अर्पित, मैं आने वाला पूरा जीवन
"मौलिक व अप्रकाशित"
अमन सिन्हा
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