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221 - 2121 - 1221 - 212

मौज आयी..घर को फूंक तमाशा बना दिया

हा.... झोंपड़ा फ़क़ीर ने ख़ुद ही जला दिया 

कर के इशारा बज़्म से जिसको उठा दिया

दरवेश ने उसी का मुक़द्दर बना दिया

अपनों के होते ग़ैर भला क्यूँ उठाए ग़म 

नादान दोस्तों ने ही रुसवा करा दिया

नफ़रत की फ़स्ल देख के ख़ुश हो रहे थे सब

बोया था जिसने ज़ह्र उसी को चखा दिया 

मुझको था ए'तिमाद कि आ जाएगी बहार

रंग-ए-ख़िज़ाँ ने मेरे यक़ीं को हिला दिया 

शाख़ों पे जिसकी पेंग बढ़ाते रहे थे हम

क्या जाने इस शजर को ये किसने गिरा दिया 

चिड़ियों पे है उक़ाबों की तिरछी नज़र 'अमीर' 

हमने भी आज दिल का परिंदा उड़ा दिया 

 

"मौलिक व अप्रकाशित" 

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Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on June 13, 2022 at 10:38pm

आदरणीय लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और संबल प्रदान करने के लिए आपका शुक्रिया।

//ईश्वर हम सब को सद्दबुद्धि दे जिससे सौहार्द्र का वृक्ष और न सूखे।// आमीन। 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 13, 2022 at 10:30pm

आ. भाई अमीरूद्दीन जी, सादर अभिवादन। वर्तमान घटनाओं से आम भारतीय के हृदय में उपजे दर्द को बखूबी बयान करती गजल के लिए ढोरों बधाई। 

ईश्वर हम सब को सद्दबुद्धि दे जिससे सौहार्द्र का वृक्ष और न सूखे। 

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