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देखूँ इसको मै शरमाऊं

मन का सारा हाल सुनाऊ

सांझ सवेरे इसको अर्पण

का सखी साजन ?ना सखि दर्पण

२.

चूमे होंठ लाल कर जाए

मन में शीतलता भर जाए 

उस पल रहे ना कोई भान

का सखि साजन ? ना सखि पान

3.

लम्बा है इतना जैसे ऊँट 

पहना नहीं है कोई सूट

तन के खड़ा है जैसे बन्ना

का सखि साजन ?ना सखी गन्ना      

---------पारुल'पंखुरी'

(मौलिक औए अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 6, 2014 at 11:07am

आदरणीया पारुल जी , बहुत ही सुंदर मनभावक कह-मुकरियां

लम्बा है इतना जैसे ऊँट 

पहना नहीं है कोई सूट

तन के खड़ा है जैसे बन्ना

का सखि साजन ?ना सखी गन्ना .............यह तो बहुत पसंद आई    

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on July 5, 2014 at 9:32pm

आ0 पारूल जी,  कहमुकरियां...अच्छी लगी । बधाई स्वीकारें । 

Comment by parul 'pankhuri' on July 5, 2014 at 1:41pm

आदरणीय नरेन्द्र जी ,नीरज जी , एवं गोपाल जी आप सही का दिल से आभार आपको मेरा ये प्रयास पसंद आया इससे मुझे और भी अच्छा लिखने की प्रेरणा मिल रही है धन्यवाद !

Comment by Neeraj Neer on July 5, 2014 at 1:31pm

बहुत  ही सुंदर , मजेदार मुकरियाँ । हार्दिक बधाई । 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 5, 2014 at 1:03pm

पारुल जी

बहुत ही सार्थक प्रयास  i  सभी  मुकरिया  प्रभावित करती है  i

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