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कह मुकरियाँ 26 से 35 (कल्पना रामानी)

26)

अपने मन का भेद छिपाए।

मेरे मन में सेंध लगाए।

रखता मुझ पर नज़र निरंतर।

क्या सखी साजन?

ना सखि, ईश्वर!

27)

हरजाई दिल तोड़ गया है।

मुझे बे खता छोड़ गया है।

नहीं भूल पाता उसको मन।

क्या सखि साजन?

ना सखि बचपन!

28)

जब से उससे प्रीत लगाई।

थामे रहता सदा कलाई।

क्षण भर ढीला करे न बंधन।

क्या सखि साजन?

ना सखि, कंगन!

29)

जब भी देना चाहूँ प्यार।

बेदर्दी कर देता वार।

बार-बार हो जाती भूल,

क्या सखि साजन?

ना सखि शूल!

30)

बागों में जब मुझसे मिलता।

मन मयूर बन सखी! मचलता।

देख-देख कर उसका शबाब!

क्या सखि साजन?

ना री गुलाब!

31)

जब बहार बागों में आए।

कहीं दूर से मुझे बुलाए।

मिलने को मन होता बेकल।

क्या सखि साजन?

ना सखि कोयल!

32)

बाहुपाश फैला सुविशाल।  

मुझे जकड़ ले करे धमाल।

पोर-पोर हो जाता कूल।

क्या सखि साजन?

ना सखि, पूल!

33)

चलते-चलते वो इतराए।

तान छेड़कर सुर में गाए।

झूम उठे सुन-सुन मन पागल।

क्या सखि साजन?

ना सखि, पायल!

34)

संग चले वो सुख दुख बाँटे।

पथ की हर बाधा को छाँटे।

चूमे, चाटे, काटे पल-पल।

क्या सखि साजन?

ना सखि, चप्पल!

35)

सुंदरता की वो है खान।

गुण इतने, क्या करूँ बखान।

नज़र मिले गम जाती भूल।

क्या सखि साजन?

ना सखि, फूल!

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Sarita Bhatia on March 1, 2014 at 8:25pm

आदरणीया कल्पना दी बहुत सुन्दर कह्मुकरियां बनी हैं हार्दिक बधाई 

Comment by annapurna bajpai on March 1, 2014 at 7:26pm

अद्भुत ! बहुत बढ़िया आ0 कल्पना दी , बधाई आपको । 

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