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न तनाब-ए-इश्क़ छुड़ाइए ये सितम हुज़ूर न ढाइए (128 )

ग़ज़ल  ( 11212 11212 11212 11212 )
न तनाब-ए-इश्क़ छुड़ाइए ये सितम हुज़ूर न ढाइए
यही इल्तज़ा है कि दिल से यूँ न उमीद-ए-ज़ीस्त मिटाइए
**
हमें इश्क़ में हैं तलाशने कई संग-ए-रह बनें हमसफ़र
है मुफ़ीद ये कि क़दम सनम ज़रा साथ साथ बढ़ाइए
**
ये जो कनखियों से है देखना ये झुकी नज़र फिर उठी नज़र
ये अदा है आपकी पुरख़तर किसी और को न सिखाइए
**
ये घटा जो दिल में है प्यार की न बरस सकी है अभी तलक
इसे रोक कर यूँ ज़मीन-ए-दिल पे न बिजलियों को गिराइये
**
भले आहू-चश्म सी है नज़र दिल-ए-मुन्तशिर पे है बे-असर
कोई तीर आप कमान से न चलाइए कि चलाइए
**
बिना आपके नहीं कुछ हैं हम किसी बुत के जैसे हैं जाँ-ब-लब
इसी बुत में जाँ नई डालने किसी दिन हयात में आइए
**
भरी तीरगी से है ज़िंदगी हमें कब मिलेगी ये रोशनी
न चिराग़ का कुछ अता पता ज़रा शम'अ आ के जलाइए
**
किसी वहम को न दें अब हवा न हो फ़ासला कोई दरमियाँ
हो शमीम प्यार की हर तरफ गुल-ए-तर यक़ीं के सजाइए
**
ये हिसार-ए-दिल ज़रा तोड़ दें है ग़ुरूर जो उसे छोड़ दें
खुले दिल से बात करें ये दिल वो फ़ज़ा 'तुरंत ' बनाइए
**
गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' बीकानेरी
मौलिक व अप्रकाशित

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