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इश्क के मजार पर

पाकीजा रुह का दीया रखते वक्त

जैसे ही उसने चुन्नी से सिर ढांका  

लौ थर्रा कर बोली

उसके साथ ही उसका

दीन और ईमान भी वापस लौट गया

उसके साथ ही

ख्वाब और खुलूस भी खो गया

वह आंखे बन्द कर मुस्कुराई

वह था .. अभी भी था

यकीनन था

कई हजार प्रकाश वर्ष दूर

प्रकाश जिस सीधी रेखा से

होकर गुजरती  है

वही शायद

उसकी हथेलियों मे नही था ......... ग़ुल सारिका  

(मौलिक और अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by बृजेश नीरज on September 8, 2013 at 10:25pm

आदरणीया आपका आभार कि आपने मेरे कहे को मान दिया। 

Comment by Gul Sarika Thakur on September 8, 2013 at 10:17pm

Bahut bahut abhar aap sabhee kaa.... Brijesh jee.. Barahkhadee .. kakahra ko kahaa jata hai ... jaise ..k ka ke kee koo ku ... ityadi .. yh shrinkhala hai meri rachnaon kee .... mera manna hai ki meri rachnayen jeevan kee barahkhadee hee hai ... rahee baat abhee bhee ki to yh hm prayah prahukt krte hain .. amuk cheez abhee bhee bhai ... vaise vyakaran kee drishti se aap sahee kah rahe hain .. mai iska dhyaan rakhungi ... lau tharrakar yah bolee ki .. uske sath hee uska deen aur eemaan bhee laut gayaa ..khwaab aur khuloos bhee kho gaya. jis pr wah aankhe band krke muskurai ki vah abhee bhee hai .. bhale hee kai hajaar prakash varh door ...

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on September 5, 2013 at 3:10am

मर्मस्पर्शी रचना, बधाई आदरनीया गुल सारिका जी

Comment by बृजेश नीरज on September 4, 2013 at 11:24pm

बहुत सुंदर भाव! आपको हार्दिक बधाई इस प्रयास पर!

एक जिज्ञासा है कि यह बारहखड़ी क्या होती है? मार्गदर्शन प्रदान करें।

रचना में एक दो जगह अटकना पड़ा

//लौ थर्रा कर बोली//

लेकिन ‘क्या बोली’ यह स्पष्ट नहीं हुआ।

एक और निवेदन है कि ‘अभी भी’ जैसा शब्द उपयुक्त नहीं। ‘अब’ के साथ ‘भी’ के संयोग से ‘अभी’ बनता है। ऐसे में ‘अभी’ के साथ ‘भी’ का प्रयोग सही नहीं है।

बहरहाल, इस भावयुक्त रचना के लिए हार्दिक बधाई!

Comment by annapurna bajpai on September 4, 2013 at 11:11pm

आदरणीया गुल सारिका जी भावनात्मक रचना हेतु बधाई । 

Comment by Meena Pathak on September 4, 2013 at 10:21pm

बहुत सुन्दर दिल को छूती हुई रचना .. बहुत बहुत बधाई

Comment by ram shiromani pathak on September 4, 2013 at 9:26pm

ख्वाब और खुलूस भी खो गया

वह आंखे बन्द कर मुस्कुराई

वह था .. अभी भी था

यकीनन था

कई हजार प्रकाश वर्ष दूर

प्रकाश जिस सीधी रेखा से

होकर गुजरती  है

वही शायद

उसकी हथेलियों मे नही था .......///वाह वाह बहुत खूब

बहुत ही सुन्दर रचना आदरणीया //हार्दिक बधाई आपको

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