For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

इश्क के मजार पर

पाकीजा रुह का दीया रखते वक्त

जैसे ही उसने चुन्नी से सिर ढांका  

लौ थर्रा कर बोली

उसके साथ ही उसका

दीन और ईमान भी वापस लौट गया

उसके साथ ही

ख्वाब और खुलूस भी खो गया

वह आंखे बन्द कर मुस्कुराई

वह था .. अभी भी था

यकीनन था

कई हजार प्रकाश वर्ष दूर

प्रकाश जिस सीधी रेखा से

होकर गुजरती  है

वही शायद

उसकी हथेलियों मे नही था ......... ग़ुल सारिका  

(मौलिक और अप्रकाशित)

Views: 771

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बृजेश नीरज on September 8, 2013 at 10:25pm

आदरणीया आपका आभार कि आपने मेरे कहे को मान दिया। 

Comment by Gul Sarika Thakur on September 8, 2013 at 10:17pm

Bahut bahut abhar aap sabhee kaa.... Brijesh jee.. Barahkhadee .. kakahra ko kahaa jata hai ... jaise ..k ka ke kee koo ku ... ityadi .. yh shrinkhala hai meri rachnaon kee .... mera manna hai ki meri rachnayen jeevan kee barahkhadee hee hai ... rahee baat abhee bhee ki to yh hm prayah prahukt krte hain .. amuk cheez abhee bhee bhai ... vaise vyakaran kee drishti se aap sahee kah rahe hain .. mai iska dhyaan rakhungi ... lau tharrakar yah bolee ki .. uske sath hee uska deen aur eemaan bhee laut gayaa ..khwaab aur khuloos bhee kho gaya. jis pr wah aankhe band krke muskurai ki vah abhee bhee hai .. bhale hee kai hajaar prakash varh door ...

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on September 5, 2013 at 3:10am

मर्मस्पर्शी रचना, बधाई आदरनीया गुल सारिका जी

Comment by बृजेश नीरज on September 4, 2013 at 11:24pm

बहुत सुंदर भाव! आपको हार्दिक बधाई इस प्रयास पर!

एक जिज्ञासा है कि यह बारहखड़ी क्या होती है? मार्गदर्शन प्रदान करें।

रचना में एक दो जगह अटकना पड़ा

//लौ थर्रा कर बोली//

लेकिन ‘क्या बोली’ यह स्पष्ट नहीं हुआ।

एक और निवेदन है कि ‘अभी भी’ जैसा शब्द उपयुक्त नहीं। ‘अब’ के साथ ‘भी’ के संयोग से ‘अभी’ बनता है। ऐसे में ‘अभी’ के साथ ‘भी’ का प्रयोग सही नहीं है।

बहरहाल, इस भावयुक्त रचना के लिए हार्दिक बधाई!

Comment by annapurna bajpai on September 4, 2013 at 11:11pm

आदरणीया गुल सारिका जी भावनात्मक रचना हेतु बधाई । 

Comment by Meena Pathak on September 4, 2013 at 10:21pm

बहुत सुन्दर दिल को छूती हुई रचना .. बहुत बहुत बधाई

Comment by ram shiromani pathak on September 4, 2013 at 9:26pm

ख्वाब और खुलूस भी खो गया

वह आंखे बन्द कर मुस्कुराई

वह था .. अभी भी था

यकीनन था

कई हजार प्रकाश वर्ष दूर

प्रकाश जिस सीधी रेखा से

होकर गुजरती  है

वही शायद

उसकी हथेलियों मे नही था .......///वाह वाह बहुत खूब

बहुत ही सुन्दर रचना आदरणीया //हार्दिक बधाई आपको

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"221 1221 1221 122**भटके हैं सभी, राह दिखाने के लिए आइन्सान को इन्सान बनाने के लिए आ।१।*धरती पे…"
2 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"ग़ज़ल अच्छी है, लेकिन कुछ बारीकियों पर ध्यान देना ज़रूरी है। बस उनकी बात है। ये तर्क-ए-तअल्लुक भी…"
6 hours ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"२२१ १२२१ १२२१ १२२ ये तर्क-ए-तअल्लुक भी मिटाने के लिये आ मैं ग़ैर हूँ तो ग़ैर जताने के लिये…"
8 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )

चली आयी है मिलने फिर किधर से१२२२   १२२२    १२२जो बच्चे दूर हैं माँ –बाप – घर सेवो पत्ते गिर चुके…See More
9 hours ago
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय निलेश सर ग़ज़ल पर नज़र ए करम का देखिये आदरणीय तीसरे शे'र में सुधार…"
14 hours ago
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"आदरणीय भंडारी जी बहुत बहुत शुक्रिया ग़ज़ल पर ज़र्रा नवाज़ी का सादर"
14 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"  आदरणीय सुशील सरनाजी, कई तरह के भावों को शाब्दिक करती हुई दोहावली प्रस्तुत हुई…"
18 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

कुंडलिया. . . . .

कुंडलिया. . .चमकी चाँदी  केश  में, कहे उमर  का खेल ।स्याह केश  लौटें  नहीं, खूब   लगाओ  तेल ।खूब …See More
18 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"आदरणीय गिरिराज भंडारी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय "
19 hours ago
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय निलेश सर ग़ज़ल पर इस्लाह करने के लिए सहृदय धन्यवाद और बेहतर हो गये अशआर…"
19 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"धन्यवाद आ. आज़ी तमाम भाई "
19 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"आ. आज़ी भाई मतले के सानी को लयभंग नहीं कहूँगा लेकिन थोडा अटकाव है . चार पहर कट जाएँ अगर जो…"
20 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service