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जयनित कुमार मेहता's Blog – June 2017 Archive (2)

शायरी चीज़ ही ऐसी है यार (ग़ज़ल)

2122 1122 22



हर घड़ी? चीज़ ही ऐसी है यार..!

शायरी चीज़ ही ऐसी है यार..!



तिश्नगी और भड़क जाती है,

उफ़! नदी चीज़ ही ऐसी है यार..!



कोई हँसता है, कोई रोता है

ज़िन्दगी चीज़ ही ऐसी है यार..!



चाँद का नूर भी फीका पड़ जाए

सादगी चीज़ ही ऐसी है यार..!



लो! हुआ मैं भी अब आदम से मशीन

नौकरी चीज़ ही ऐसी है यार..!



साथ अश्क़ों के गुज़रती है उम्र

आशिक़ी चीज़ ही ऐसी है यार..!



सारा दरिया पी के भी बाक़ी है

तिश्नगी चीज़ ही… Continue

Added by जयनित कुमार मेहता on June 30, 2017 at 11:38pm — 1 Comment

पारसाई ही मेरी दौलत है (ग़ज़ल)

2122 1212 22

जो ये लम्हा उदास है तो है
वो कहीं आस-पास है तो है

पैरहन जिस्म पर हज़ारों हैं
रूह गर बेलिबास है तो है

तीरगी हिज्र की है आंखों में
दिल में लेकिन उजास है तो है

पारसाई ही मेरी दौलत है
छल-कपट तेरे पास है तो है

क्यों न मिट जाए ग़म की कड़ुवाहट
आंसुओं में मिठास है तो है

इश्क़ में कोई मोज़िजा होगा
दिल को अब भी ये आस है तो है

(मौलिक व अप्रकाशित)

Added by जयनित कुमार मेहता on June 25, 2017 at 3:28pm — 6 Comments

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