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Zohaib Ambar's Blog – August 2018 Archive (3)

ग़ज़ल (हर धड़कन पर इक आहट)

हर धड़कन पर इक आहट,
सोचूँ तो हो घबराहट..

यारों उससे पूंछो तो,
क्यूँ है मुझसे उकताहट..

लहजा उसका है शीरीं,
आँखें उसकी कड़वाहट..

मुझसे इतनी दूरी क्यूँ,
हर लम्हा है झुंझलाहट..

उससे हाले दिल कह कर,
देखी उसकी तिर्याहट..!!

मौलिक एवं अप्रकाशित।

Added by Zohaib Ambar on August 25, 2018 at 8:31pm — 3 Comments

ग़ज़ल

ज़माने की जहालत कम नहीं थी,

इधर अपनी बग़ावत कम नही थी..

लिये ख़ंजर वो देखो ताक में हैं,

हमारी जिस को चाहत कम नहीं थी..

सभी की थी दिखावे की मुहब्बत,

दिलों में वैसे नफ़रत कम नहीं थी..

जहाँ पर ज़िन्दगी की खुशबुएं थी,

उसी महफ़िल में ग़ीबत कम नहीं थी..

हमारे पास रुसवाई की दौलत,

अरे उनकी बदौलत कम नहीं थी..…

Continue

Added by Zohaib Ambar on August 3, 2018 at 3:30am — 5 Comments

ग़ज़ल

किसी ने तेरी सूरत देख ली है,

यही समझो क़यामत देख ली है..

अभी अंजाम-ए-दिल मालूम क्या है,

अजी तुमने तो आफत देख ली है..

कि ईजा हिज्र की देखी कहाँ थी,

फ़क़त तेरी बदौलत देख ली है..

चुराता है वो काफ़िर आँख मुझसे,

निगाह-ए-चश्म-ए-हसरत देख ली है..

शराफत आज हमने तर्क कर दी,

ज़माने की शराफत देख ली है..

ज़रा शिकवा किया था आज उनसे,

अरे उल्टी नदामत देख ली है..

संभल जाओ मियां ज़ोहेब तुम भी,…

Continue

Added by Zohaib Ambar on August 3, 2018 at 3:30am — No Comments

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