For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मनोज कुमार सिंह 'मयंक''s Blog (12)

दो परिंदे (लघुकथा)

दो परिंदे थे | दोनों में बड़ा प्रेम था | दोनों साथ ही रहा करते थे | जहां भी जाते एक साथ | जो भी खाते मिल बाँट कर खाते | दोनों ने एक ही वृक्ष की एक ही डाली पर एक ही प्रकार के तिनकों से एक साथ घरौंदा बनाया | एक दिन एक परिंदा बीमार पड़ गया | दूसरे ने भी खाना पीना छोड़ दिया किन्तु ऐसा कब तक चल सकता था ? स्वस्य्घ परिंदे ने सोचा मेरा भाई कमजोर हो गया है | कुछ दाने अपने चोंच में भरकर लेता आऊँ, हो सकता है मेरा भाई ठीक हो जाय? वह दाना इकठ्ठा करने चला गया | थोड़ी देर में एक और परिंदा उस पेड़ पर आया | उसने…

Continue

Added by मनोज कुमार सिंह 'मयंक' on March 13, 2014 at 11:02pm — 6 Comments

दुर्मिल सवैया

आठ सगण

(१)

जब से यह देश अजाद भयो, तब से हर ओर जहालत है |

अपना सब देइ दियो जग को, अबहूँ यह नागन पालत है |

घनघोर घटा, चमके बिजली परिधान सुखावन डालत है |

सब ओर भयानक दृश्य दिखे तज हीरक कांच निकालत है |

(२)

धन भाग धरो तन भारत में, तप युक्त मही अति पावन है |

सत मारग हो, शुभ नीति चलो, अरु प्रेम सुपाठ सिखावन है |

रितु आइ रही, रितु जाइ रही, नदियाँ रसवंत लुभावन है |

जग अंध भले निज सारथ में पर से यह प्रीत निभावन है…

Continue

Added by मनोज कुमार सिंह 'मयंक' on March 7, 2014 at 10:00am — 4 Comments

निर्वाचन चालीसा

संविधान की ले शपथ, उसको तोडनहार |

कछु पापी नेता भये, अनुदिन भ्रष्टाचार ||

जोड़ तोड़ के गणित में, लोकतंत्र भकुआय |

हर चुनाव समरूप है, गया देश कठुआय ||

अथ श्री निर्वाचन चालीसा | जिसने भी जनता को पीसा ||१||

वह नेता है चतुर सुजाना | लोकतंत्र में जाना माना ||२||

धन जन बल युत बाहुबली हो | हवा बहाए बिना चली हो ||३||

झूठी शपथ मातु पितु बेटा | सब को अकवारी भर भेटा ||४||

रसमय चिकनी चुपड़ी बातें | मुख में राम बगल में घातें ||५||

अपना ही घर आप उजाडू | झंडे पर…

Continue

Added by मनोज कुमार सिंह 'मयंक' on March 6, 2014 at 10:29pm — 8 Comments

त्रिभंगी (एक प्रयास)

त्रिभंगी - १०, ८, ८, ६ (जगण पृथक शब्द के रूप में प्रयुक्त नहीं हो सकता)

बैठी पदमासन, सब पर शासन, वरद अभय कर, मुसकाती |

वीणा रव सुन्दर, उर के अंदर, सब कुछ झंकृत, कर जाती ||

आशीष दयामयि, हे करुणामयि, सतत विमल हो, मति मेरी |

कोटिक रवि जागे, अघ तम भागे, जलधारा जनु, गति मेरी ||

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by मनोज कुमार सिंह 'मयंक' on March 4, 2014 at 5:00pm — 10 Comments

चरस (लघुकथा)

भाड़ में गए हरामजादे समाजवाले...राघव ने जेल की दीवारों पर एक जोरदार मुक्का मारा| उसका पोर पोर काँटा बन चुका था| वह बाहर से भी जख्मी था और भीतर से भी| वह जहर खा लेना चाहता था, लेकिन इस कालकोठरी में उसे वह भी प्राप्त नहीं हो सकता था| उसे आज तक मिला ही क्या? उसकी आँखे रोते रोते सूज चुकी थी, अब उनमें आंसू भी नहीं बन रहे थे| उसे ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो वह अपने शरीर के बाहर हवा में तैर रहा हो| एक ही पल में अगणित विचार कौंध उठते| वह जड़ भी था, चलायमान भी| उसके अंदर महाभारत का युद्ध चल रहा था, वह…

Continue

Added by मनोज कुमार सिंह 'मयंक' on March 2, 2014 at 11:27pm — 15 Comments

कैसी गंगा?अब अवजल है|

कुछ नहीं बिगाड़ सकी,

मेरा,

सिकंदर की तलवार|

हाँ,झेला है मैंने –

सेल्युकस की रार|

नादिरशाही तलवारों की…

Continue

Added by मनोज कुमार सिंह 'मयंक' on April 5, 2012 at 9:30pm — 9 Comments

एक प्रयास

पुनः लुंठन हो रहा चुपचाप हैं हम|

अक्षमाला पर मरण के जाप हैं हम|

 

चिर विकेन्द्रीकृत हुई केन्द्रीय सत्ता,

नव्य युग, प्राचीनता के सांप हैं हम|

 …

Continue

Added by मनोज कुमार सिंह 'मयंक' on April 4, 2012 at 10:30am — 10 Comments

परिवर्तन

कालबाह्य हो गयी अचानक सिर से वंचित चोटी है|

अब तो सारी ही रचनाएं कंप्यूटर पर होती है||

मृतिका पात्रों का सोंधापन,

स्नेहपूर्ण परसन,प्रक्षालन|

मधुमय मंगल गीतों…

Continue

Added by मनोज कुमार सिंह 'मयंक' on April 3, 2012 at 10:30pm — 8 Comments

दीनो धरम

दीनो धरम,ईमान के हाइल हैं यहाँ पर|

मैं इल्म किसे दूँ,सभी जाहिल हैं यहाँ पर|

.

नादान बशर रो रहा जिस शख्स के आगे,

वह शख्स कहीं और है,गाफिल है यहाँ…

Continue

Added by मनोज कुमार सिंह 'मयंक' on April 2, 2012 at 10:30pm — 14 Comments

चंद अशआर

अरे शिकवा नहीं कोई,शिकायत क्या करू तुझसे?

वली है तू सनम मेरा,इबादत की इजाजत दे||१||



बहुत अब देख ली दुनिया,नहीं अब देखना कुछ…

Continue

Added by मनोज कुमार सिंह 'मयंक' on March 14, 2012 at 8:30am — 19 Comments

मेरे हाइकू

(१)

जागरण की

वेला में सो रही है

सारी दुनिया|

(२)…

Continue

Added by मनोज कुमार सिंह 'मयंक' on March 13, 2012 at 11:18pm — 6 Comments

बहुत जरूरी है|

पिछली बातों को दुहराना बहुत जरूरी है|

कल को सब बातें बतलाना बहुत जरूरी है|

बहुत जरूरी है अपनी सब भूलों को लिखते जाना,

आशाओं के दीप जलाना बहुत जरूरी है|…

Continue

Added by मनोज कुमार सिंह 'मयंक' on March 11, 2012 at 6:33pm — 11 Comments

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"जी, कुछ और प्रयास करने का अवसर मिलेगा। सादर.."
22 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"क्या उचित न होगा, कि, अगले आयोजन में हम सभी पुनः इसी छंद पर कार्य करें..  आप सभी की अनुमति…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय.  मैं प्रथम पद के अंतिम चरण की ओर इंगित कर रहा था. ..  कभी कहीं…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
""किंतु कहूँ एक बात, आदरणीय आपसे, कहीं-कहीं पंक्तियों के अर्थ में दुराव है".... जी!…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"जी जी .. हा हा हा ..  सादर"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"अवश्य आदरणीय.. "
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ जी  प्रयास पर आपकी उपस्थिति और मार्गदर्शन मिला..हार्दिक आभारआपका //जानिए कि रचना…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन।छंदो पर उपस्थिति, स्नेह व मार्गदर्शन के लिए आभार। इस पर पुनः प्रयास…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. प्रतिभा बहन, सादर अभिवादन। छंदो पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अशोक जी, सादर अभिवादन।छंदों पर उपस्थिति उत्तसाहवर्धन और सुझाव के लिए आभार। प्रयास रहेगा कि…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"हर्दिक धन्यवाद, आदरणीय.. "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"वाह वाह वाह ..  दूसरा प्रयास है ये, बढिया अभ्यास है ये, बिम्ब और साधना का सुन्दर बहाव…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service