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Shriprakash shukla's Blog (3)

शरद पूर्णिमा विभा

शरद पूर्णिमा विभा



सम्पूर्ण कलाओं से परिपूरित,

आज कलानिधि दिखे गगन में

शीतल, शुभ्र ज्योत्स्ना फ़ैली,

अम्बर और अवनि आँगन में



शक्ति, शांति का सुधा कलश,

उलट दिया प्यासी धरती पर

मदहोश हुए जन जन के मन,

उल्लसित हुआ हर कण जगती पर



जब आ टकरायीं शुभ्र रश्मियाँ,

अद्भुत, दिव्य ताज मुख ऊपर

देदीप्यमान हो उठी मुखाभा,

जैसे, तरुणी प्रथम मिलन पर



कितना सुखमय क्षण था यह,

जब औषधेश सामीप्य निकटतम

दुःख और व्याधि…
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Added by Shriprakash shukla on December 7, 2010 at 9:00pm — 1 Comment

तम से लड़ता रहा, दीप जलता रहा

तम से लड़ता रहा, दीप जलता रहा



एक, नन्हा सा दिया,

बस ठान बैठा, मन में हठ

अंधियार, मैं रहने न दूं,

मैं ही अकेला, लूं निपट



मन में सुदृढ़ संकल्प ले

जलने लगा वो अनवरत,

संत्रास के झोकों ने घेरा

जान दुर्वल, लघु, विनत



दूसरा आकर जुड़ा,

देख उसको थका हारा

धन्य समझूं, मैं स्वयं को

जल मरूं, पर दूं सहारा



इस तरह जुड़ते गए,

और श्रृंखला बनती गयी

निष्काम,परहित काम आयें

भावना पलती गयी



एक होता…
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Added by Shriprakash shukla on November 19, 2010 at 2:00pm — 5 Comments

दीपावली दीप

दीपावली दीप



दीपावलि की धवल पंक्तियाँ, देती आयीं सदा संदेशा I

छाया मिटे क्लेश कुंठा की, जीवन सुखमय रहे हमेशा I

छोटा बड़ा नहीं कोई भी, बीज साम्य के दीपक बोते I

इसी लिए हर घर के दीपक, केवल मिटटी के ही होते I



चाह यही यह दिव्य रश्मियाँ, हर मन को आलोड़ित करदें I

ये प्रकाश की मनहर किरणें, जीवन अंगना आलोकित कर देंI



रहे कामना यही ह्रदय में, मंगलमय हो हर जीवन I

प्रेम और सद्भाव बढायें, मिलकर सभी धनिक निर्धनI

देश प्रेम की प्रवल भावना, भरी…
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Added by Shriprakash shukla on November 18, 2010 at 12:30am — 3 Comments

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