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मनोज अहसास's Blog – April 2020 Archive (5)

ग़ज़ल मनोज अहसास

221   2121   1221    212

वो मेरी ज़िन्दगी है उसे ये पता नहीं,

मैंने सलीके से ही यकीनन कहा नहीं।

ऐसा कोई कोई है ज़माने में दोस्तो,

जो आने वाले कल की कभी सोचता नहीं।

सब अपनी अपनी धुन में बताते हैं उसकी बात,

वो कैसा है, कहाँ है,किसी को पता नहीं।

मजबूरियां हमारी हमारा नसीब है,

चलने की आरज़ू है मगर रास्ता नहीं।

बेकार सर खपाने की आदत का क्या करें,

कोई नया ख्याल मयस्सर हुआ नहीं।

हर फूल को बिछड़ना है डाली से एक दिन, …

Continue

Added by मनोज अहसास on April 23, 2020 at 10:30pm — 6 Comments

ग़ज़ल मनोज अहसास

221   2121   1221   212

आँखों में बेबसी है दिलों में उबाल है.

कैसा फरेबी वक्त है चलना मुहाल है.

जो हर घड़ी करीब हैं उनका नहीं ख़्याल,

जो बस ख़्याल में है उसी का ख़्याल है.

रहता हूं जब उदास किसी बात के बिना,

तब खुद से पूछना है जो वो क्या सवाल है

.

पहुँचें हैं जिस मकाम पर उससे गिला हो क्या,

बस रास्तों की याद का दिल में मलाल है.

कुछ लोग बदहवास हैं सोने के भाव से,

कुछ लोग मुतमईन हैं रोटी है दाल…

Continue

Added by मनोज अहसास on April 14, 2020 at 11:59pm — 7 Comments

ग़ज़ल मनोज अहसास

221  2121  1221  212

इतने दिनों के बाद भी क्यों एतबार है.

मिलने की आरज़ू है तेरा इंतज़ार है.

ये ज़िस्म की तड़प है या मन का खुमार है,

लगता है जैसे हर घड़ी हल्का बुखार है.

मैं तेरी रूह छू के रूहानी न हो सका,

वो तेरा ज़िस्म छू के तेरा पहला प्यार है.

अब भी मेरे बदन में घुला है तेरा वजूद,

किस्मत की उलझनों से नज़र बेकरार है.

छुप कर तेरे ख़्याल में आती है जग की पीर,

दुनिया के गम से भी मेरा दिल सोगवार है…

Continue

Added by मनोज अहसास on April 13, 2020 at 11:43am — 1 Comment

ग़ज़ल मनोज अहसास

2×15

एक ताज़ा ग़ज़ल

मैं अक्सर पूछा करता हूँ कमरे की दीवारों से,

रातें कैसे दिखती होंगी अब तेरे चौबारों से.

सौंप के मेरे हाथों में ये दुनिया भर का पागलपन,

चुपके चुपके झाँक रहा है वो मेरे अशआरों से.

नफरत ,धोखा ,झूठे वादें और सियासत के सिक्के,

कितने लोगों को लूटा है तूने इन हथियारों से.

प्यार, सियासत, धोखेबाजी और विधाता की माया,

मानव जीवन घिरा हुआ है दुनिया में इन चारों से.

घोर अंधेरा करके घर में…

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Added by मनोज अहसास on April 8, 2020 at 12:04am — No Comments

ग़ज़ल मनोज अहसास

1222   1222   122

यूँ तुझपे हक़ मेरा कुछ भी नहीं है

मगर दिल भूलता कुछ भी नहीं है

तेरी बातें भी सारी याद है पर

कहा तेरा हुआ कुछ भी नहीं है

तेरी आंखों में है गर कोई मंजिल

तो फिर ये रास्ता कुछ भी नहीं है

ग़ज़ल अपनी कलम से खुद ही निकली

तसल्ली से लिखा कुछ भी नहीं है

मेरा अफसाना जो तुम पढ़ रहे हो

ये कुछ लायक है या कुछ भी नहीं है

नज़र जिसमें तेरी…

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Added by मनोज अहसास on April 4, 2020 at 12:30am — 2 Comments

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