For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Vijay nikore's Blog (210)

आत्म-खोज

 

                                                          आत्म-खोज

                            ( यह उन सभी को सादर समर्पित है जिन्होंने दर्द को

                         भले  एक क्षण के लिए भी  पास से छुआ है, पीया है,

                         यह  उनको  आस  और  प्रोत्साहन  देने  के  लिए है )

 

                                   कहाँ ले जाएगा यह प्रकंपित…

Continue

Added by vijay nikore on February 4, 2013 at 6:30am — 16 Comments

कोरा कागज़

कोरा कागज़

अगर तू चाहती तो कभी भी

कोरे कागज़ पर मुझको

अँगूठा लगाने को कह सकती थी

और जानती हो, मैं..

मैं ‘न’ न कहता ।

उस कोरे कागज़ पर फिर

तुम कुछ भी लिख सकती थी।



तुमने मेरे नाम पर मुझसे

अधिकार माँगा

मैंने वह आँखें मूँद के दे दिया,

पर जब "तुम्हारे" अपने नाम पर तुमने

मुझसे अधिकार माँगा,

मेरे ओंठों पर हर पल नाम तुम्हारा था,

अत: यह अधिकार मैं तुम्हें दे न सका ।



मेरे धुँधँले-धुँधले सुलगते वजूद ने

नीदों…

Continue

Added by vijay nikore on January 29, 2013 at 3:00pm — 17 Comments

संस्मरण .... अमृता प्रीतम जी

संस्मरण ... अमृता प्रीतम जी

यह संस्मरण एक उस लेखक पर है जिसने केवल अपनी ही ज़िन्दगी नहीं जी, अपितु उस प्रत्येक मानव की ज़िन्दगी जी है जिसने ज़िदगी और मौत को,खुशी और ग़म को, एक ही प्याले में घोल कर पिया है  ... जिसके लिए ज़िन्दगी की "खामोशी की बर्फ़ कहीं से भी टूटती पिघलती नहीं थी।"

यह संस्मरण उस महान कवयित्रि पर है जो सारी उम्र कल्पना के गीत लिखती रही...."पर मैं वह नहीं हूँ जिसे कोई आवाज़ दे, और मैं यह भी जानती हूँ, मेरी…

Continue

Added by vijay nikore on January 29, 2013 at 1:00pm — 17 Comments

आवाहन

            

 

                                                              आवाहन

                           झूमते पत्तों में से छन कर आई मेरे आँगन में

                     हँसती-हँसती उदभासित किरणों की छाप,

                     नभ-स्पर्शी हवाएँ तरंगित…

Continue

Added by vijay nikore on January 19, 2013 at 7:15pm — 15 Comments

कट गई है लहर

                           कट  गई  है  लहर

            जाने क्यूँ कुछ ऐसा-ऐसा लगता है

            कि  जैसे  कट  गई  लहर  नदी  से,

            वापस न लौट सकी है,

            और ज़िन्दगी इस कटी लहर में धीरे-धीरे

            तनहा  तिनके  की  तरह …

Continue

Added by vijay nikore on January 9, 2013 at 6:00pm — 7 Comments

भोर के पंछी

भोर के पंछी

तुम ...

रहस्यमय भोर के निर्दोष पंछी

तुमसे उदित होता था मेरा आकाश,

सपने तुम्हारे चले आते थे निसंकोच,

खोल देते थे पल में मेरे मन के कपाट

और मैं ...

मैं तुम्हें सोचते-सोचते, बच्चों-सी,

नींदों में मुस्करा देती थी,

तुम्हें पा लेती थी।

पर सुनो!

सुन सकते हो क्या ... ?

मैं अब

तुम्हें पा नहीं सकती थी,

एक ही रास्ता…

Continue

Added by vijay nikore on January 2, 2013 at 2:30pm — 28 Comments

समर्पण

                                                              समर्पण

          (यह कविता मैं अपनी जीवन साथी, नीरा जी, को सादर समर्पित कर रहा हूँ)

 

                             तुम

                             मेरे शब्दों को पी लेती हो,…

Continue

Added by vijay nikore on December 22, 2012 at 8:18pm — 12 Comments

मुझको "तुम्हारी" ज़रूरत है!

मुझको "तुम्हारी" ज़रूरत है!





दूर रह कर भी तुम सोच में मेरी इतनी पास रही,

छलक-छलक आई याद तुम्हारी हर पल हर घड़ी।

पर अब अनुभवों के अस्पष्ट सत्यों की पहचान

विश्लेषण करने को बाधित करती अविरत मुझको,

"पास" हो कर भी तुम व्यथा से मेरी अनजान हो कैसे

या, ख़्यालों के खतरनाक ज्वालामुखी पथ पर

कब किस चक्कर, किस चौराहे, किस मोड़ पर

पथ-भ्रष्ट-सा, दिशाहीन हो कर बिखर गया मैं

और तुम भी कहाँ, क्यूँ और कैसे झर गई…

Continue

Added by vijay nikore on December 19, 2012 at 12:00pm — 9 Comments

दूरियों की दूरी

मंज़िल की ओर बढ़ने से सदैव

दूरियों की दूरी ...

कम नहीं होती।

 

बात जब कमज़ोर कुम्हलाय रिश्तों की हो तो

किसी "एक" के पास आने से,

नम्रता से, मित्रता का हाथ बढ़ाने से,

या फिर भीतर ही भीतर चुप-चाप…

Continue

Added by vijay nikore on December 14, 2012 at 12:00am — 4 Comments

दूरियों की दूरी

दूरियों की दूरी

मंज़िल की ओर बढ़ने से सदैव

दूरियों की दूरी ...

कम नहीं होती।

बात जब कमज़ोर कुम्हलाय रिश्तों की हो तो

किसी "एक" के पास आने से,

नम्रता से, मित्रता का हाथ बढ़ाने से,

या फिर भीतर ही भीतर चुप-चाप

अश्रुओं से दामन भिगो लेने से

रिश्ते भीग नहीं जाते,

उनमें पड़ी चुन्नटें भी ऐसे

कभी कम नहीं होतीं।

रिश्तों में रस न रहा जब शेष हो

तो पतझड़ के पेड़ों की सूखी टहनियों की तरह

टूट-टूट जाते हैं वह

ज़मीन पर गिरे सूखे पत्तों की…

Continue

Added by vijay nikore on December 12, 2012 at 5:30pm — 4 Comments

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"वादी और वादियॉं (लघुकथा) : आज फ़िर देशवासी अपने बापू जी को भिन्न-भिन्न आयोजनों में याद कर रहे थे।…"
31 minutes ago
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"स्वागतम "
20 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on नाथ सोनांचली's blog post कविता (गीत) : नाथ सोनांचली
"आ. भाई नाथ सोनांचली जी, सादर अभिवादन। अच्छा गीत हुआ है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Admin posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।"ओबीओ…See More
Sunday
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"धन्यवाद सर, आप आते हैं तो उत्साह दोगुना हो जाता है।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और सुझाव के लिए धन्यवाद।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आ. रिचा जी, अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। आपकी उपस्थिति और स्नेह पा गौरवान्वित महसूस कर रहा हूँ । आपके अनुमोदन…"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आ. रिचा जी अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई। "
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुइ है। हार्दिक बधाई।"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"शुक्रिया ऋचा जी। बेशक़ अमित जी की सलाह उपयोगी होती है।"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"बहुत शुक्रिया अमित भाई। वाक़ई बहुत मेहनत और वक़्त लगाते हो आप हर ग़ज़ल पर। आप का प्रयास और निश्चय…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service