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लक्ष्मण रामानुज लडीवाला's Blog – October 2014 Archive (2)

आशा का मै दीप जलाऊँ

पुष्य नक्षत्र की शुभ बेला में, श्री लक्ष्मी का अवतार हुआ

महक फैलाती आई कमला, तो गुरु नक्षत्र भी धन्य हुआ|

 

दाता भी है रिद्धि सिद्दी के, सुख सम्रद्धि जो लेकर आये  

माँ शारदे भी संग बैठी, ज्ञान पिपासू प्यास बुझायें |

  

बरकत करती धन वैभव की, जो धन धान्य से घर भरदें

दीपो का त्यौहार मनाते, आँगन माँड़ रँगोली सज दे |

 

घर लक्ष्मी प्रसन्न जब रहती, तब लक्ष्मी का वरदान मिले

बिन गणपति और ज्ञानेश्वरी, फिर उल्लू ही साक्षात् मिले…

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Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on October 22, 2014 at 12:00pm — No Comments

देख ह्रदय के घाव (दोहे)

मोती  सी बूंदे सजल, प्रकट करे मन भाव, 
अश्क छलकते कह रहे, देख ह्रदय के घाव |
 
अश्को में पानी भरा, समझो इसका मोल  
जिसके नैनन जल दिखे,उसका ह्रदय टटोल, 
 
देखों शिशु के पास में, आँसू ही हथियार 
देख बिलगता भूख से, दूध मिले हर बार   
 
पानी पानी वह हुई, आयी जब भी लाज
पानी से ही लाज है, पानी से ही साज |
 
पनघट सब खाली हुए, खाली गगरी हाथ 
मेघ बरसते है…
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Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on October 15, 2014 at 10:30am — 9 Comments

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